प्रेमकुमार मणि का आलेख 'प्रेमचंद आज भी क्यों प्रासंगिक हैं'
प्रेमचंद भारतीय साहित्य ही नहीं, संस्कृति के भी प्रतिमान हैं। उन्होंने अपने लेखन से हिन्दी कहानी और उपन्यास की दिशा को बदल कर रख दिया। उनका लेखन इसलिए भी अलग भाव-भूमि पर खड़ा दिखाई पड़ता है, क्योंकि उनका इतिहास बोध स्पष्ट था। वे अंग्रेजी सरकार की चालाकियों और शातिरपने से वाकिफ थे। प्रेमचंद की कहानियों में उनके समय का सरोकार दिखाई पड़ता है। वर्तमान हिन्दी साहित्य के अप्रतिम शिल्पी प्रेमचंद के जन्मदिन पर उनको नमन करते हुए आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं प्रेमकुमार मणि का आलेख 'प्रेमचंद आज भी क्यों प्रासंगिक हैं'। यह आलेख 'प्रभात खबर' से साभार लिया गया है। प्रेमचंद आज भी क्यों प्रासंगिक हैं प्रेमकुमार मणि प्रेमचंद पिछली सदी के पूर्वाद्ध के लेखक हैं। उस जमाने के, जिसकी ज्यादातर चीजें आज अप्रासंगिक हो गई हैं। उनका जीवन और जमाना 1880-1936 का रहा है। तब भारत ब्रिटिश उपनिवेशवाद से संघर्ष कर रहा था और पूरे देश में राष्ट्रीयता की लहर चल रही थी। राष्ट्रीयता के इस दौर में ज्यादातर लेखक उससे प्रभावित और कुछ तो आक्रांत थे। अनेक आधुनिक भारतीय भाषाओं के विकसित होने का भी यही समय था। हि...