आशीष तिवारी की कविताएं
आशीष तिवारी |
किसी भी समय के कवि की प्रतिबद्धता
अपने समय और समाज के प्रति होती है।
हिन्दी कविता के तमाम ऐसे युवा स्वर
हैं जो अपनी प्रतिबद्धता से हमें आश्वस्त करते हैं। आशीष में एक परिपक्व इतिहास
बोध भी दिखायी पडता है। अपनी कविता 'इतिहास का भूत' में आशीष लिखते हैं : 'इतिहास
आईना है/ जितना धूमिल करोगे/ उतने भटके हुए लगोगे वैश्विक मंचों पर।' आशीष
तिवारी ऐसे ही एक कवि हैं जिनकी कविताओं में पक्षधरता स्पष्ट है। आज पहली
बार पर प्रस्तुत है युवा कवि आशीष तिवारी की कविताएँ।
आशीष तिवारी की कविताएं
इतिहास का भूत
इतिहास के प्रति घृणा
फैलाने वाला,
उसे नकारने वाला,
तब भयभीत हो जाता है,
जब उसके सजाये रंगीन
मंचों पर
इतिहास मुंह चिढ़ाने लगता
है
इतिहास के आख्यान गम्भीर
और चिंतनपरक होते हैं
इनका मज़ाक उड़ाने वाला
मदारी जैसा दिखने लगता
है
कभी-कभी उसका हाथ
अपने से बड़े मदारी के
हाथ में जाता है
तो वह खुद को मदारी के
बंदर जैसा उछलता भी पाता है
इतिहास आईना है
जितना धूमिल करोगे
उतने भटके हुए लगोगे
वैश्विक मंचों पर
जितना लादोगे इतिहास पर
भार
गांधी, नेहरू तुम्हें भूत की तरह डराते रहेंगे
तुम्हारे सजे मंचों पर
बार-बार आएंगे
और तुम भीतर ही भीतर
बौने हो जाओगे
तब इतिहास हंसेगा तुम
पर....
बहरी धुन और नागरिकता
दूल्हे सज रहे हैं
घोड़ियां तैयार हैं
बारात धूमधाम से सज कर
खड़ी है
सारी बारात नागरिकता तय
करने चल पड़ी है
इन बारातियों पर हत्या
का भूत सवार है
देश के भीतरी हिस्सों से
लोग सीमाओं की ओर जा रहे हैं
सीमाओं पर रहने वालों को
धकेलने
उन्हें पता है कि सीमा
पर बसे लोगों को
आसानी से धकेला जा सकता
है बाहर की ओर
उनका कहना है कि जो लोग
बाराती नहीं हैं
वे घराती भी बनने लायक नहीं
हैं,
उन्हें अपना घर छोड़ देना
चाहिए
बारात में एक ऐसी धुन बज
रही है
जिसे हर बाराती पहचानता
है
वे उसी धुन में बेतरतीब
हाथ-पाँव चला रहे
इनके हाथ और पांवों की
झटक से
सीमा पर बसे कईयों को
सीमापार पहुंचा दिया गया
बड़ी आसानी से,
क्या कोई बताएगा कि
आखिर वो धुन कौन सी है
जिसमें
सारे बाराती मदमस्त हैं
या कम-से-कम यही बता दे
कि आखिर जो
सीमा पार गिरे वे कहां
गए
गिरने वालों को कहीं
ज़मीन मिली या नहीं
पर गिराने वाले बाराती
खुश हैं
सम्पर्क
शोधार्थी, हिंदी
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
मोबाईल : 9696994252
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की है.)
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की है.)
दोनों कवितायेँ समय का दर्द बयां कर, एक प्रश्नचिन्ह छोड़ जाता है मन मष्तिष्क पर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
शुक्रिया��
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.11,2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3526 में दिया जाएगा | आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
आभार
हटाएंसमय के बदलते रंग को बयां करती कविताएं, सोचने पर मजबूर कर दैती।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंसुंदर कविताएं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बंधु
हटाएंबेहद उम्दा....
जवाब देंहटाएंआपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है|
https://hindikavitamanch.blogspot.com/2019/11/I-Love-You.html
जी। शुक्रिया।
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंशुक्रिया महोदय
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