श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़लें
जन्म : 20 जनवरी 1965, पलामू के डाल्टनगंज
(झारखंड) में। करीब तीन दशक से लेखन और पत्रकारिता। पहली किताब 'लघुकथाएं अंजुरी भर' (कथाकार सत्यनारायण
नाटे के साथ साझा संग्रह) 1984 में छपी। 1998 में प्रकाशित उपन्यास 'धपेल' (पलामू के अकाल की गाथा, राजकमल प्रकाशन) और
2001 में प्रकाशित 'अग्निपुरुष' (पलामू की पृष्ठभूमि में भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष का आख्यान, राजकमल पेपरबैक्स)
चर्चित। 1998 में ही कविता-पुस्तिका 'प्रेम के अकाल में' छपी। लंबे अंतराल
के बाद 2013 में कहानी संग्रह 'चना चबेना गंग जल' (ज्योतिपर्व
प्रकाशन) से प्रकाशित। दशक भर के श्रम से तैयार नया उपन्यास 'कंथा' ( 'नवनीत' में धारावाहिक
प्रकाशित, महाकवि जयशंकर प्रसाद के जीवन और उनके युग पर आधारित) प्रकाश्य।
संप्रति : मुख्य उप संपादक, दैनिक जागरण, वाराणसी (उ.प्र.)
श्याम बिहारी श्यामल ने विविध विधाओं में लेखन
किया है. उनके उपन्यास और कहानी संग्रह चर्चित रहे हैं. आलोचना के क्षेत्र में
किये गए श्यामल जी के काम महत्वपूर्ण हैं. जयशंकर प्रसाद के जीवन पर आधारित उनका शोधपरक उपन्यास ‘कंथा’ पत्रिकाओं
में धारावाहिक रूप से छप कर पाठकों के बीच चर्चित और प्रशंसित हुआ है. इन दिनों वे
गज़लें लिख रहे हैं. श्यामल जी ने अपनी कुछ ताजातरीन गज़लें पहली बार के लिए भेजी
हैं. आइए आज पढ़ते हैं श्याम बिहारी श्यामल की गज़लें.
श्याम बिहारी श्यामल
की ग़ज़लें
ग़ालिब के नाम
यह सुब्ह गज़ल और वह
शाम गज़ल
जिन्दगी मिर्जा ग़ालिब के नाम गज़ल
जिन्दगी मिर्जा ग़ालिब के नाम गज़ल
'शब ओ रोज तमाशा'
क्या खूब देखे
बेसाख्ता अंदाज़-ए-बयान और गज़ल
बेसाख्ता अंदाज़-ए-बयान और गज़ल
ज़न्नत की हक़ीक़त को
जान कर भी
दिल को खुश रखने को कमाल गज़ल
दिल को खुश रखने को कमाल गज़ल
रगों की हदें तोड़
आंखों से टपका
हक़ीक़त-ए-दुनिया बयान लाल गज़ल
हक़ीक़त-ए-दुनिया बयान लाल गज़ल
खुद ही देख लिया
खुद को मरहूम कभी
'यूं होता तो क्या होता' सवाल गज़ल
'यूं होता तो क्या होता' सवाल गज़ल
जन्नत से दोजख तक
सब ठेंगे पर
मोहब्बत-ए-आदम बेमिसाल गज़ल
मोहब्बत-ए-आदम बेमिसाल गज़ल
ओ अल्फाज-ए-दिल
ज़बान-ए-रूह
बरक़रार रह यूँ ही तू शान-ए-गज़ल
बरक़रार रह यूँ ही तू शान-ए-गज़ल
धरती से आसमां तक
सबको तस्दीक
बयान-ए-असद से जां में जां गज़ल
बयान-ए-असद से जां में जां गज़ल
क़दम क़दम जिन्दा है
मुक़ाम-ए-याद
हरवक़्त हमारे पास वह शाह-ए-गज़ल
हरवक़्त हमारे पास वह शाह-ए-गज़ल
श्यामल से बड़ा कौन
अमीर-ए-जहाँ
हर लम्हे में गुलजार ग़ालिबान गज़ल
हर लम्हे में गुलजार ग़ालिबान गज़ल
इकलौते त्रिलोचन
ख़ान संस्मरणों की, अनोखे शंका मोचन
जो भी मिलता उसी के हो जाते त्रिलोचन
जनपद की जान रहे और काशी की शान
अलेखक रामजी बोले, बमभोले त्रिलोचन
भारत यायावरों की कविता में विचरते
अनिल जनविजयों की आंखों में वही त्रिलोचन
नामवरानुज बताते 'सभा' के दिनों की बातें
तंग कमरे में रंग से कैसे रहते त्रिलोचन
कैसे कविता और खाना साथ बनाते
कपड़ा इकलौता अधभीगा पहनते त्रिलोचन
मैदागिन से लौटते अस्सी पर मिले थे
लंबे कुर्ते में साइकिल पर टंगे त्रिलोचन
रामजी पूछे 'का गुरु पैजमवा कहां गिरल'
'कमरवे प, पानी चुअत रहल' बोले त्रिलोचन
सुबह के निकले शाम मैदागिन से लौटे
एकमात्र कुर्ते में यह इकलौते त्रिलोचन
स्वर्गवासी निराला से ताजा मुलाकातें
बातें तुलसी से भेंट की बताते त्रिलोचन
युवा ठठा पड़ते, गप्पें हांकते बहुत हैं
मुस्काते भाव-जगत के नागरिक त्रिलोचन
ओ हिन्दी कविता अपने लाडले से मिल
आज शतायु हुए हैं श्यामल के त्रिलोचन
दीवाने अकेले चले
फर्क़ नहीं कौन
कहता है क्या
गिरेबां जांच खुद करता है क्या़
गिरेबां जांच खुद करता है क्या़
ज़माने की लानतें
अपनी जगह
तारीफ़ के लिए मरता है क्या्
तारीफ़ के लिए मरता है क्या्
तारीख़ से पूछ कैसा
खेल चला
कारवां खु़द कभी निकलता है क्या
कारवां खु़द कभी निकलता है क्या
टूटे नहीं, घास की रोटी पर रहे
जाना नहीं झुकना होता है क्या
जाना नहीं झुकना होता है क्या
फांसी पर झूले
हंस-हंस के मिटे
माटी न भूले उन्हें भूलता है क्या
माटी न भूले उन्हें भूलता है क्या
दीवाने जो हुए
अकेले ही निकले
श्यामल इन्क़लाब रुकता है क्या
श्यामल इन्क़लाब रुकता है क्या
सीढि़यां गुमराह
यहां
खुद से तर-ब-तर रह
मेले से बेखबर रह
मेले से बेखबर रह
हालांकि है मुश्किल
पर
देख जो वह जरूर कह
देख जो वह जरूर कह
रोड़े की ऊंचाई न
देख
नदी बनकर वेग से बह
नदी बनकर वेग से बह
सीढि़यां गुमराह
यहां
जाने कहां पहुंचाएं वह
जाने कहां पहुंचाएं वह
शोर गढ़ेगा क़तार
घुट नहीं चुप्पी मत सह
घुट नहीं चुप्पी मत सह
नई रोशनी रचेगी
आग यह श्यामल महमह
आग यह श्यामल महमह
कुर्सी
कुर्सी ही पहचान थी
उसीमें उनकी जान थी
उसीमें उनकी जान थी
कुर्सी बोते कुर्सी
काटते
कुर्सी पीते कुर्सी खाते
कुर्सी पीते कुर्सी खाते
कुर्सी कुर्सी
कुर्सी जपते
यहां-वहां तब आते जाते
यहां-वहां तब आते जाते
कुर्सी लीन, वह भी तल्लीन
कुर्सी गाते कुर्सी बजाते
कुर्सी गाते कुर्सी बजाते
कुर्सी रोते कुर्सी
हंसते
कुर्सी सोचते कुर्सी बोलते
कुर्सी सोचते कुर्सी बोलते
अक्सर ही दिख जाते,
कुर्सी को गले लगाते
कुर्सी को गले लगाते
कुर्सी हुए वह, कुर्सी ‘वह’’
धूम मचा दी कुर्सियाते
धूम मचा दी कुर्सियाते
श्यामल कुर्सियान
अजूबे
गजब उसे गाते-बजाते
गजब उसे गाते-बजाते
जल छुपता
गवैये वह इतने बड़े
लूट लेते थे खड़े-खड़े
लूट लेते थे खड़े-खड़े
बंद मुंह से कुछ
ऐसा गाते
सितार बज उठते पड़े-पड़े
सितार बज उठते पड़े-पड़े
आग राग उनका अजूबा
हिम-शिखर जलते बड़े-बड़े
हिम-शिखर जलते बड़े-बड़े
आलाप का जादू न
पूछो
खज़ाने खनकते गड़े-गड़े
खज़ाने खनकते गड़े-गड़े
प्यास को बना देते
तलवार
जल छुपता फिरता घड़े-घड़े
जल छुपता फिरता घड़े-घड़े
श्यामल ऐसा जादूगर
कहां
तराने भी जिसके लड़े-लड़े
तराने भी जिसके लड़े-लड़े
संपर्क :
मोबाईल - 09450955978,
ई मेल : shyambiharishyamal1965@gmail.com
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.)
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