विवेक निराला की कविताएँ





समकालीन कवियों में विवेक निराला अपने अलग शिल्प और सांगीतिक भाषा के लिए विशेष तौर पर जाने जाते हैं। ‘एक बिम्ब है यह’ उनका पहला कविता संग्रह था। एक अरसे बाद राजकमल प्रकाशन से विवेक का दूसरा कविता संग्रह ‘ध्रुव तारा जल में’ प्रकाशित हुआ है। कवि को बधाई देते हुए हम प्रस्तुत कर रहे हैं कवि के इस नए संकलन की कुछ चुनिन्दा कविताएँ। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं कवि विवेक निराला की कविताएँ   

       


विवेक निराला की कविताएँ

 
भाषा

मेरी पीठ पर टिकी
एक नन्हीं सी लड़की
मेरी गर्दन में
अपने हाथ डाले हुए

जितना सीख कर आती है
उतना मुझे सिखाती है।

उतने में ही अपना
सब कुछ कह जाती है।


पासवर्ड

मेरे पिता के पिता के पिता के पास
कोई संपत्ति नहीं थी।
मेरे पिता के पिता को अपने पिता का
वारिस अपने को सिद्ध करने के लिए भी
मुक़द्दमा लड़ना पड़ा था।

मेरे पिता के पिता के पास
एक हारमोनियम था
जिसके स्वर उसकी निजी संपत्ति थे।
मेरे पिता के पास उनकी निजी नौकरी थी
उस नौकरी के निजी सुख-दुःख थे।

मेरी भी निजता अनन्त
अपने निर्णयों के साथ।
इस पूरी निजी परम्परा में मैंने
सामाजिकता का एक लम्बा पासवर्ड डाल रखा है।


कहानियाँ

इन कहानियों में
घटनाएं हैं, चरित्र हैं
और कुछ चित्र हैं।

संवाद कुछ विचित्र हैं
लेखक परस्पर मित्र हैं।

कोई नायक नहीं
कोई इस लायक नहीं।

इन कहानियों में
नालायक देश-काल है
सचमुच, बुरा हाल है।


मैं और तुम

 
मैं जो एक
टूटा हुआ तारा
मैं जो एक
बुझा हुआ दीप।

तुम्हारे सीने पर
रखा एक भारी पत्थर
तुम्हारी आत्मा के सलिल में
जमी हुई काई।

मैं जो तुम्हारा
खण्डित वैभव
तुम्हारा भग्न ऐश्वर्य।

तुम जो मुझसे निस्संग
मेरी आख़िरी हार हो
तुम जो
मेरा नष्ट हो चुका संसार हो।


हत्या

एक नायक की हत्या थी यह
जो खुद भी हत्यारा था।

हत्यारे ही नायक थे इस वक़्त
और नायकों के साथ
लोगों की गहरी सहानुभूति थी।

हत्यारों की अंतर्कलह थी
हत्याओं का अन्तहीन सिलसिला
हर हत्यारे की हत्या के बाद
थोड़ी ख़ामोशी
थोड़ी अकुलाहट
थोड़ी अशान्ति

और अन्त में जी उठता था
एक दूसरा हत्यारा
मारे जाने के लिए।

विवेक निराला

मरण

वे सब अपने-अपने गाँवों से शहर आ गए थे
शहरों में प्रदूषण था इसलिए
वे बार-बार अंतःकरण को झाड़-पोंछ रहे थे।

वे अनुसरण से त्रस्त थे और अनुकरण से व्यथित इसलिए
पंक्तिबद्ध हो कर इसके खिलाफ
पॉवर हॉउस में पंजीकरण करा रहे थे।

वे निर्मल वातावरण के आग्रही थे
उनके आचरण पर कई खुफिया निगाहें थीं
वे बारहा अपनी नीतियों से मात खाते थे और भाषा से लात
क्योंकि उनके पास कोई व्याकरण नहीं था।

कई चरणों में अपनी आत्मा और स्मृतियों में बसे देहात को
उजाड़ने के बाद वे
अपनी काया में निरावरण थे बिल्कुल अशरण।
सबसे तकलीफ़देह वह क्षण था
जिसमें निश्चित था उनका मरण
और इस समस्या का अब तक निराकरण नहीं था।


मेरा कुछ नहीं

 
मेरे हाथ मेरे नहीं
उन पर नियोक्ता
का अधिकार है।

मेरे पाँव मेरे नहीं
उन पर सफ़र लिखा है
जैसे सड़क किनारे का वह पत्थर
भरवारी-40 किमी।

तब तो मेरा हृदय भी मेरा नहीं।

फिर तो कुछ भी नहीं मेरा
मेरा कुछ भी नहीं
वह ललाट भी नहीं
जिस पर गुलामी लिखा है
और प्रतिलिपि से
नत्थी है मेरी आत्मा।


स्थगित

लोग जहाँ-तहाँ रुक गए
बन्द हुआ
ईश्वर का सारा रोज़गार।

न नदियों में प्रवाह रह गया
न ज्वालामुखी में दाह
एक कराह भी थम गयी।

प्रदक्षिणा दक्षिण में ठहर गयी
और अवाम के लिए
तय बाँये रास्ते पर
बड़े गड्ढे बन चुके हैं।

एक ही भभकती लालटेन
अपने शीशे के और काले होते जाने पर
सिर धुनती निष्प्रभ पड़ी है।

क्षण भर के लिए
आसमान से कड़की और चमकी
विद्युत् में रथच्युत योद्धा
लपक कर लापता हुए।

जीवन अब भी अपठित है
मृत्यु अलिखित
समय अभी स्थगित।


सम्पर्क

मोबाईल - 09415289529

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