विनीता बाडमेरा की कहानी “जाड़े के दिन”
विनीता बाडमेरा कहानी या कविता खालिस कल्पना की उड़ान नहीं होती। उसके पीछे रचनाकार की गहन अनुभूतियां होती हैं। रोजमर्रा का जीवन हो, या प्राकृतिक घटनाएं रचनाकार अपने हुनर से उसे एक कहानी का रूप दे देता है। विनीता बाडमेरा ऐसी ही कथाकार हैं जो अनुभूतियों को कहानी में सफलतापूर्वक ढालने में सक्षम हैं। कहानी पढ़ कर ताज्जुब होता है कि क्या ऐसी भी साधारण घटना कहानी का कथ्य बन सकती है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं विनीता बाडमेरा की कहानी “जाड़े के दिन”। “जाड़े के दिन” विनीता बाडमेरा इस बार का जाड़ा उनके लिए हैरान करने वाला है। हाथ कांप नहीं रहे हैं और तो और वर्षों से हर जाड़े में फटने वाली एड़ियों ने इस बार उन्हें जरा भी कष्ट नहीं पहुंचाया यह उनके लिए आश्चर्य की बात है लेकिन इस आश्चर्य की उन्हें जरा भी प्रसन्नता नहीं हो रही है। “क्या तुम घर में अब भी अलाव जलाते हो?” वे अक्सर फ़ोन लगा कर अपने मित्रों से पूछते। “अलाव तो नहीं, समय बदल गया है इसलिए। पर हां, हीटर ज़रुर उपयोग में लेते हैं क्योंकि हमारे बनारस में तो ठंड बहुत बढ़ गयी हैं।” दूसरी ओर से ज़वाब आता। उनका मायूस मन और ...