प्रशान्त पाठक की कविताएँ
आज जब व्यापक पैमाने पर नफरतों का कारोबार किया जा रहा हो, एक दूसरे के बीच घृणायें फैलायीं जा रहीं हो, रचनाकार अपनी रचनात्मक सोच जारी रखे हुए हैं. यह दुनिया के लिए एक भरपूर उम्मीद है. घटाटोप अन्धकार के बीच प्रकाश के ये जुगनू अपनी कोशिशें लगातार जारी रखते हैं. इन्हें तमाम हताशाएं भी हताश नहीं कर पातीं. तमाम पराजएँ भी पराजित नहीं कर पातीं. प्रशान्त पाठक ऐसे ही कवि हैं जो चाहते हैं कि ‘रिश्तों की गर्माहट/ महसूस होती रहे/ हृदय के किसी गहरे तल तक/ माथे पर छलक आया पसीना/ घबराहट का नहीं/ मेहनत का हो/ आंखों से एक दूसरे को देख/ आंसू ही टपके/ खून नहीं ... ...’ प्रशान्त की इधर की कविताओं में निखार स्पष्ट तौर पर दिख रहा है. आज पहली बार पर प्रशान्त की बिल्कुल टटकी कविताएँ देते हुए यह अहसास हो रहा है कि ‘बेहतरीन कविताएँ हमेशा टटकी होती हैं.’ अब प्रशान्त ने कवियों की दुनिया में अपने कदम रख दिए हैं. उनकी जिम्मेदारियाँ निश्चित रूप से बढ़ गयी हैं. इस युवा कवि का स्वागत करते हुए हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं इनकी कविताएँ. ...