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हरिवंशराय बच्चन की नव वर्ष पर कविताएँ

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आज वर्ष 2015 के अन्तिम महीने का अन्तिम दिन है. कल से हम एक नए साल की नयी रोशनी में होंगे. लगभग इतिहास बन चुका यह वर्ष इस मायने में अहम् रहा कि भारत के इतिहास में पहली बार साहित्यकर्मियों , संस्कृतिकर्मियों , फिल्मकारों , वैज्ञानिकों और इतिहासकारों ने आगे बढ़ कर फासीवाद , कट्टरता और साम्प्रदायिकता के विरुद्ध संघर्ष की कमान संभाली. दुश्वारियाँ अभी और भी हैं. लड़ाई काफी लम्बी है. लेकिन अन्त में जीत तो ' जीवन की महिमा ' की ही होनी है. वीरेन डंगवाल के शब्दों में कहें तो ' पर डरो नहीं , चूहे आखिर चूहे ही हैं/ जीवन की महिमा नष्ट नहीं कर पाएँगे '.  बहरहाल ' पहली बार ' की तरफ से सभी मित्रों को नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएँ. इस अवसर पर प्रस्तुत है हरिवंश राय बच्चन की नव वर्ष से सम्बंधित ये रचनाएँ.   हरिवंशराय बच्चन की नव वर्ष पर कविताएँ आओ , नूतन वर्ष मना लें! गृह-विहीन बन वन-प्रयास का तप्त आँसुओं , तप्त श्वास का , एक और युग बीत रहा है , आओ इस पर हर्ष मना लें! आओ , नूतन वर्ष मना लें! उठो , मिटा दें आशाओं को , दबी छिपी अभिलाषाओं को , आओ ...

कैलाश बनवासी की कहानी 'बस के खेल और चार्ली चैप्लिन'

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कैलाश बनवासी निश्चित रूप से आज के दौर हम तकनीकी रूप से सबसे अधिक समृद्ध हैं । सोशल मीडिया पर अत्यन्त सक्रिय भी । लेकिन यह भी एक कड़वी हकीकत है कि हम संवेदना के स्तर पर लगातार पिछड़ते चले जा रहे हैं । मुझे तो इस बात का डर है कि आगे के दिनों में संवेदना महज किताबी शब्द बन कर ही न रह जाए । कैलाश बनवासी ने अपनी इस मार्मिक कहानी 'बस के खेल और चार्ली चैप्लिन' के माध्यम से कुछ ऐसे ही इशारे किए हैं जो हमारी लगातार क्षरित होती हुई संवेदनशीलता पर प्रहार करती है । दुखद तो यह है कि इसका शिकार भी वही लोग हैं जिन्हें हम श्रमिक नाम से जानते-पहचानते हैं । दुर्भाग्यवश तकनीक की तरह ही वे सोशल मीडिया से भी दूर हैं । दोनों जगह इनके नाम पर बाजीगरी हो रही है जबकि आज भी मजदूरों के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है । बहरहाल इसी भावभूमि पर आधारित कहानी - ' बस के खेल और चार्ली चैप्लिन' आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं । इस कहानी के कहानीकार हैं युवा एवं सुपरिचित कथाकार कैलाश बनवासी । आज की यह पोस्ट हमारे लिए इसलिए भी विशेष है कि पहली बार पर प्रकाशित यह 600वीं पोस्ट है ।   ...