शेष नारायण मिश्र की गज़लें
शेष नारायण मिश्र
का जन्म उत्तर प्रदेश के चित्रकूट
जिले के मऊ में दो जनवरी
१९८५ को हुआ. स्थानीय महामति
प्राणनाथ महाविद्यालय मऊ
से स्नातक स्तर तक की शिक्षा
प्राप्त करने के पश्चात इन्होने
वर्ष २००५ में दिल्ली के जवाहर
लाल नेहरु विश्वविद्यालय
से संस्कृत में स्नातकोत्तर
किया. अपने समूचे अध्ययन काल
में शेषनारायण एक मेधावी
छात्र रहे. २००६ में यू.
जी. सी. की जे. आर. एफ. के लिए
चयनित हुए. सम्प्रति इलाहाबाद
विश्वविद्यालय से ‘ध्वनिवादियों
के पारस्परिक सैद्धांतिक
मत वैभिन्य का समीक्षात्मक
अध्ययन’ शीर्षक से शोधरत.
आमतौर पर लोकतंत्र से एक आम आदमी बहुत कुछ उम्मीदें पाल बैठता है. उस उम्मीद के टूटने पर जो आक्रोश इस आम आदमी के मन में सहज ही पैदा होता है उसी की परिणति हैं शेष नारायन की गज़लें. शेष के यहाँ पाने और जीतने में एक बड़ा फर्क है. एक संवेदनशील मन हमेशा जीतने की बजाय पाना चाहता है. और यहीं रचनाकार आगे बढ़ जाता है उस राजनीति से जिसमें येन-केन-प्रकारेन जीत का ही महत्व है इसके लिए चाहें जो कीमत चुकानी पड़े.
कहीं पर भी प्रकाशित शेष नारायण की ये प्रारम्भिक गज़लें हैं.
१
ये सच है लोग वहशी हो गए हैं इस जमाने के
तेरा कहना मुनासिब है, तेरा जाना जरूरी था.
अगर बस जीतना होता तो तुझको जीत लेता मैं,
मगर मेरी नजर में तो तुझे पाना जरूरी था.
२
अंधियारा मथूं प्रकाश बना सकता हूँ.
निज रुदन तुम्हारा हास बना सकता हूँ
कुछ और नहीं बस तुम मेरे हो जाओ
एक तारे से आकाश बना सकता हूँ.
३. (बतर्जे दुष्यंत)
हालात हैं संगीन यहाँ कौन है मुजरिम?
हिन्दू बहुत खराब, मियाँ और भी खराब
मंदिर में बज रही हैं घंटियाँ जहर बुझी
मस्जिद से उठ रही है अजाँ और भी खराब
४
रोकते सब हैं मगर हम तो उधर जाते हैं
और होंगे वो जो बिगड़े तो सुधर जाते हैं
हमको नफ़रत में भी कुछ हद की क़दर है लेकिन
प्यार करते हैं तो हर हद से गुजर जाते हैं
५
कहूँ किस तरह मैं कि ये चाहता हूँ
नशा ऐ सनम! बिन पिए चाहता हूँ.
मेरी खुदपरस्ती पे नज़रे करम हो,
कि खुद को तुम्हारे लिए चाहता हूँ
जला हूँ दहकती हुई सुर्ख़ियों में,
सुकूँ के लिए हाशिये चाहता हूँ
अंधेरों से कुछ ऊबने सा लगा हूँ,
न सूरज मिले तो दिए चाहता हूँ.
मैं अपने कहे कुछ रदीफ़ों पे अब भी
तुम्हारे कहे काफिये चाहता हूँ
संपर्क-
शेष नारायण मिश्र
पुत्र शिव प्रताप मिश्र
ग्राम पोस्ट – मऊ
जिला – चित्रकूट
उत्तर प्रदेश
210209
मोबाईल- 08924918938
आमतौर पर लोकतंत्र से एक आम आदमी बहुत कुछ उम्मीदें पाल बैठता है. उस उम्मीद के टूटने पर जो आक्रोश इस आम आदमी के मन में सहज ही पैदा होता है उसी की परिणति हैं शेष नारायन की गज़लें. शेष के यहाँ पाने और जीतने में एक बड़ा फर्क है. एक संवेदनशील मन हमेशा जीतने की बजाय पाना चाहता है. और यहीं रचनाकार आगे बढ़ जाता है उस राजनीति से जिसमें येन-केन-प्रकारेन जीत का ही महत्व है इसके लिए चाहें जो कीमत चुकानी पड़े.
कहीं पर भी प्रकाशित शेष नारायण की ये प्रारम्भिक गज़लें हैं.
१
ये सच है लोग वहशी हो गए हैं इस जमाने के
तेरा कहना मुनासिब है, तेरा जाना जरूरी था.
अगर बस जीतना होता तो तुझको जीत लेता मैं,
मगर मेरी नजर में तो तुझे पाना जरूरी था.
२
अंधियारा मथूं प्रकाश बना सकता हूँ.
निज रुदन तुम्हारा हास बना सकता हूँ
कुछ और नहीं बस तुम मेरे हो जाओ
एक तारे से आकाश बना सकता हूँ.
३. (बतर्जे दुष्यंत)
हालात हैं संगीन यहाँ कौन है मुजरिम?
हिन्दू बहुत खराब, मियाँ और भी खराब
मंदिर में बज रही हैं घंटियाँ जहर बुझी
मस्जिद से उठ रही है अजाँ और भी खराब
४
रोकते सब हैं मगर हम तो उधर जाते हैं
और होंगे वो जो बिगड़े तो सुधर जाते हैं
हमको नफ़रत में भी कुछ हद की क़दर है लेकिन
प्यार करते हैं तो हर हद से गुजर जाते हैं
५
कहूँ किस तरह मैं कि ये चाहता हूँ
नशा ऐ सनम! बिन पिए चाहता हूँ.
मेरी खुदपरस्ती पे नज़रे करम हो,
कि खुद को तुम्हारे लिए चाहता हूँ
जला हूँ दहकती हुई सुर्ख़ियों में,
सुकूँ के लिए हाशिये चाहता हूँ
अंधेरों से कुछ ऊबने सा लगा हूँ,
न सूरज मिले तो दिए चाहता हूँ.
मैं अपने कहे कुछ रदीफ़ों पे अब भी
तुम्हारे कहे काफिये चाहता हूँ
संपर्क-
शेष नारायण मिश्र
पुत्र शिव प्रताप मिश्र
ग्राम पोस्ट – मऊ
जिला – चित्रकूट
उत्तर प्रदेश
210209
मोबाईल- 08924918938
A most awaited poet is now in pahleebaar.
जवाब देंहटाएंI'm such a big fan of you sir.
now waiting for another update of your ghazals.
Bahut dinon baad kuchh achha padhne ko mila
जवाब देंहटाएंTiwari Keshav
जवाब देंहटाएंAllah kare jore kalam aur jiyada. Aur han jo bigde to sudher jate han.. Wah pahlibar ka shukriya. Shayar ko salam.
सामयिक और बेहतरीन गज़ले
जवाब देंहटाएंअँधियारा, रुदन बेबसी के इन रदीफ़ों में अपने समाज'यह सच है लोग बहशी हो गए हैं इस जमाने के' और धर्म का 'खराब' रूप मन को परेशान करता है लेकिन इन्ही के बाच से 'हद से गुजरकर प्यार ' करने की उम्मीद सबसे ज्यादा ताकतवर बन कर उभरती है ' मेरी नज़र में तो तुझे पाना जरुरी है ' ' एक तारे से आकाश बना सकता हूँ' ...एक ताजा स्वर शेष नारायण मिश्र जी को बधाई ' आगे इस तरह के सुंदर प्रयास जारी रखें ..
जवाब देंहटाएंकाफी सम्भावना है मित्र आपकी लेखनी में ...हमें और भी पढने का इन्तजार रहेगा | फिलहाल बधाई आपको |
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