उमाशंकर परमार की किताब ‘प्रतिपक्ष का पक्ष’ पर प्रेम नंदन की लिखी समीक्षा
उमाशंकर सिंह परमार आलोचना के क्षेत्र में अपना लोहा मनवा चुके युवा आलोचक उमाशंकर सिंह परमार की आलोचना की एक महत्वपूर्ण किताब प्रकाशित हुई है – ‘प्रतिपक्ष का पक्ष’। इस किताब का नाम ही सब कुछ बयां कर देता है। लोक को ले कर परस्पर विवाद की स्थिति रही है। इसके बावजूद जोखिम लेते हुए उमाशंकर ने लोक के सन्दर्भ में अपना जो पक्ष रखा है उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। हाँ, उस पर बहस जरुर हो सकती है। और साहित्य की यही मजबूती भी तो है जहाँ प्रतिपक्ष आज भी अत्यंत अहम् भूमिका निभाता है। उमाशंकर परमार को इस किताब की बधाई देते हुए हम प्रस्तुत कर रहे हैं इस किताब की एक समीक्षा जिसे लिखा है युवा कवि प्रेम नंदन ने। तो आइए पढ़ते हैं यह समीक्षा। ‘प्रतिपक्ष का पक्ष’ – लोकधर्मिता के नये प्रतिमान प्रेम नंदन आलोचना महज प्रशंसा या कमियाँ तलाशने का उपक्रम नहीं है; बल्कि किसी भी रचना या रचनाकार को समग्रता से समझने का एक साहित्यिक उपादान है। आज जब आलोचना अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही है और मात्र ठकुरसुहाती में तब्दील होती जा रही है, ऐसे में आलोचना के क्षेत्र में भी त...