तरुण त्रिपाठी का आलेख ‘भोजपुरी में ग़ज़ल की परम्परा’.
मूल रूप से ग़ज़ल अरबी काव्य की एक विधा है जो आगे चल कर फारसी, उर्दू और हिन्दी में भी काफी लोकप्रिय हुई. उर्दू में पहली बार ग़ज़ल ने भारतीय कथ्यों को अपनाया और इस रूप में वह परम्परागत ग़ज़ल से अलग भावभूमि पर खादी हुई. हिंदुस्तान की क्षेत्रीय भाषाओँ में भी ग़ज़ल लेखन के प्रयास दिखाई पड़ते हैं. भोजपुरी में भी यह परम्परा समृद्ध दिखाई पड़ती है. युवा कवि तरुण त्रिपाठी ने भोजपुरी में ग़ज़ल की इस परम्परा पर प्रकाश डाला है. तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं तरुण त्रिपाठी का आलेख ‘भोजपुरी में ग़ज़ल की परम्परा’. भोजपुरी में ग़ज़ल की परंपरा तरुण त्रिपाठी ' भारतेंदु मंडल ' में एक भोजपुरी शायर की जगह पक्की थी , वो थे भोजपुरी के पहले शायर (जैसा माना गया है) ' तेग अली '.. वे बनारस के ' रॉबिनहुड ' गुंडा थे.. यानी गरीबों की रक्षा करने वाला गुंडा.. ' नारायण दास ' के अनुसार.. कद था 6 फ़ुट.. आदमी तगड़े.. चेहरे पर अंगुठिया लट.. सर पर पगड़ी और हाथ में लाठी पहचान थी उनकी.. ' राजा ' अपना तखल्लुस रखे थे.. अपने शेरों में भी गुंडई पर्याप्त रखते थे...