राजेन्द्र शर्मा की रपट 'बाँसुरी सम्राट की ज़िद्द के समक्ष नतमस्तक महंत जी'

 




वाराणसी सांस्कृतिक विविधताओं का शहर है। वर्ष भर यहां कोई न कोई सांस्कृतिक आयोजन होता ही रहता है। इसी क्रम में संकट मोचन संगीत समारोह का नाम लिया जा सकता है जो वाराणसी में संकट मोचन हनुमान मंदिर में आयोजित एक वार्षिक संगीत समारोह में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है। संकट मोचन संगीत समारोह का आयोजन 1923 से अनवरत होता आ रहा है। इस आयोजन में गायन वादन से जुड़े राष्ट्रीय एवम अंतरराष्ट्रीय स्तर के उत्कृष्ट कलाकार भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य में अपना प्रदर्शन प्रस्तुत करते हैं। इस वर्ष यह आयोजन 16 अप्रैल से 21 अप्रैल 2025 तक आयोजित किया गया। इस बार के आयोजन की खासियत यह रही कि आयोजक संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र ने पहली बार संगतकार के रूप में पखावज वादन की प्रस्तुति किया। राजेन्द्र शर्मा लिखते हैं 'यह पहली प्रस्तुति ही एक ऐसे मील का पत्थर साबित हुई, जिसमें 86 वर्षीय बॉसुरी सम्राट हरि प्रसाद चौरसिया ने ज़िद्द पकड़ ली कि उनके साथ बतौर संगतकार महंत विशम्भर नाथ मिश्र ही होंगे। बाल और वृद्ध हठ एक समान होती है, पंडित जी की हठ के समक्ष अन्तोगत्वा संकट मोचन मंदिर के महंत और संकट मोचन संगीत समारोह के संयोजक महंत विशम्भर नाथ मिश्र को नतमस्तक होना ही पड़ा। लगभग पौन घंटे की जुगलबंदी के बाद महंत विशम्भर नाथ मिश्र ने कह उठे कि पंडित जी के साथ जुगलबंदी करते हुए मेरी तो हवा ही निकल गयी और हरि प्रसाद चौरसिया ने मंच से ही कहा कि महंत जी के साथ जुगलबंदी करते हुए मैं नर्वस हो रहा था।' अपने क्षेत्र में शिखर छूने के बावजूद ऐसी विनम्रता दुर्लभ होती है। कवि आलोचक राजेन्द्र शर्मा ने इस आयोजन की एक रपट भेजी है जिसे आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं राजेन्द्र शर्मा की रपट 'बाँसुरी सम्राट की ज़िद्द के समक्ष नतमस्तक महंत जी'।



संकट मोचन संगीत समारोह

'बाँसुरी सम्राट की ज़िद्द के समक्ष नतमस्तक महंत जी'


राजेन्द्र शर्मा


संकट मोचन संगीत समारोह में हर बरस कुछ ना कुछ नया जुडने की परम्परा है, इस वर्ष के 102वें आयोजन के पहले ही दिन पहली प्रस्तुति ही एक ऐसे मील का पत्थर साबित हुई, जिसमें 86 वर्षीय बॉसुरी सम्राट हरि प्रसाद चौरसिया ने ज़िद्द पकड़ ली कि उनके साथ बतौर संगतकार महंत विशम्भर नाथ मिश्र ही होंगे। बाल और वृद्ध हठ एक समान होती है, पंडित जी की हठ के समक्ष अन्तोगत्वा संकट मोचन मंदिर के महंत और संकट मोचन संगीत समारोह के संयोजक महंत विशम्भर नाथ मिश्र को नतमस्तक होना ही पड़ा। लगभग पौन घंटे की जुगलबंदी के बाद महंत विशम्भर नाथ मिश्र ने कह उठे कि पंडित जी के साथ जुगलबंदी करते हुए मेरी तो हवा ही निकल गयी और हरि प्रसाद चौरसिया ने मंच से ही कहा कि महंत जी के साथ जुगलबंदी करते हुए मैं नर्वस हो रहा था। 102वें संकट मोचन संगीत समारोह में पहले दिन पहली प्रस्तुति में जो घटा, उसे समझने के लिए 59 साल पहले का किस्सा जानना बेहद जरुरी है।


इस किस्से की शुरुआज साल 1976 से हुई। संकट मोचन मंदिर के महंत और संकट मोचन संगीत समारोह के संस्थापक पंडित अमर नाथ मिश्र अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच जब फुरसत पाते तो अपने प्रिय वाद्य पखावाज पर हाथ आजमाते। उस समय दस बरस के उनके पौत्र विशम्भर नाथ मिश्र कोतुहल से अपने बाबा को निहारते रहते। एक दिन बाबा अमर नाथ मिश्र ने बालक विशम्भर के कोतुहल को देखने समझने के बाद उसे अपने पास बैठा कर पखावज वादन सिखाना शुरु किया। इस तरह लगभग 59 साल पहले बाबा और पौत्र के बीच गुरु शिष्य परम्परा का आगाज हुआ।


संकट मोचन संगीत समारोह का आयोजन 1923 से होता आ रहा है लेकिन इसके संस्थापक महंत पंडित अमर नाथ मिश्र ने 1977 तक यानि 54वें संकट मोचन संगीत समारोह तक कभी पखावज वादन की अपनी प्रस्तुति इस समारोह में नहीं दी। एकाएक पचपनवें समारोह में महंत अमर नाथ मिश्र ने पखावज वादन की अपनी प्रस्तुति दी तो संगीत रसिक इतनी सधी हुई प्रस्तुति देख कर हैरत में पड़ गये। दरअसल यह प्रस्तुति एक बाबा को अपने पौत्र को परिवार की परम्परा से बावस्ता करने की कोशिश थी। पौत्र विशम्भर नाथ जब तब पखावज वादन का रिवाज करते।





कहते है ना समय पंख लगा कर उड़ता है, विशम्भर नाथ मिश्र के लिए भी समय पंख लगा कर ही उडा। स्कूल से कालेज और कालेज से रुडकी में इंजीनियरिंग की पढाई, उसके बाद दाम्पत्य जीवन की शुरुआत, आईआईटी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग विभाग में अध्यापन, बाबा महंत अमर नाथ मिश्र और पिता महंत वीरभद्र मिश्र के सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यों में एक कार्यकर्ता की भूमिका निर्वाहन करने के बीच गंगा सफाई अभियान के प्रबल पैरोकार, अखाड़े के पहलवान प्रो. विशम्भर नाथ मिश्र को पखावज का रियाज करने का समय ही नहीं मिला।


साल 2013 में संकट मोचन मंदिर के महंत का गुरुत्तर दायित्व मिलने पर तो व्यस्तता और ही बढ गयी। अपने प्रिय वाद्य पखावज पर हाथ आजमाने के लिए महंत विशम्भर नाथ मिश्र भीतर ही भीतर अकुलाते रहते। पचास की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते पखावज वादन की अकुलाहट चरम सीमा पार करने पर एक दिन महंत विशम्भर नाथ मिश्र ने तय किया कि समय का अभाव चाहे कितना हो, वह समय निकाल कर अपने बाबा की परम्परा को आगे बढ़ाएंगे। पचास की उम्र में पखावज वादन आसान नहीं होता है लेकिन महंत विशम्भर नाथ मिश्र तो उनमें से है जो सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करते है कि वह अव्वल दर्जे के जिद्दी हैं, अपनी जिद्द के लिए वह किसी की नहीं सुनते और लीक से हट कर काम करने का, फैसले लेने का संस्कार उन्होंने अपने देवतुल्य पिता पूर्व महंत वीरभद्र मिश्र से वंशानुगत पाया है, इसमें उनका क्या दोष।


बहरहाल 2016 से पखावज वादन के रियाज का सिलसिला शुरु हुआ परंतु यह सिलसिला महंत विशम्भर नाथ मिश्र की वाराणसी में सामाजिक, सांस्कृतिक, संकट मोचन मंदिर की जिम्मेदारियों के बीच कभी नियमित नहीं हो पाया। साल 2019 में दिल्ली में सोपोरी एकेडमी ऑफ म्यूजिक एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स द्वारा आयोजित 15वें सामापा संगीत सम्मेलन में दुर्लभ वाद्य पखावज वादन की एकल प्रस्तुत कर महंत विशम्भर नाथ मिश्र ने संगीत प्रेमियों को आश्चर्यचकित कर दिया, वह भी ऐसे व्यक्ति द्वारा जो कई अन्य क्षेत्रों में एक प्रतिष्ठित नाम जरुर है परन्तु प्रदर्शनकारी कलाकार के रूप में नहीं जाना जाता है। सोपोरी एकेडमी ऑफ म्यूजिक एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स की प्रस्तुति के बाद पंडित विशम्भर नाथ मिश्र देश भर जहां तहां पखावज वादन करते रहे परन्तु वाराणसी में विशेष रुप से संकट मोचन संगीत समारोह में अपनी प्रस्तुति देने से बचते रहे।





वाराणसी में हर साल महाशिवरात्रि के अवसर पर आयोजित होने वाले ध्रुपद मेले में महंत विशम्भर नाथ मिश्र यदा कदा पखावज वादन बतौर संगतकार करते रहते परन्तु संकट मोचन संगीत समारोह में अपने बाबा की मानिंद अपनी प्रस्तुति देने से उनके संस्कार रोकते। संकट मोचन संगीत समारोह के 101वें आयोजन में महंत विशम्भर नाथ मिश्र के दोस्त गुंदेचा बन्धु के आग्रह पर बतौर संगतकार पखावज वादन कर साल 1978 का इतिहास दोहरा दिया।


इस बार बीते साल दोहराये गये इस इतिहास को बाँसुरी सम्राट पंडित हरि प्रसाद चौरसिया फिर दोहराये जाने की जिद्द कर बैठे। हुआ यह कि दशकों से संकट मोचन संगीत समारोह में हाजिरी लगाने आते रहे पंडित हरि प्रसाद चौरसिया को यह इल्म ही नहीं था कि महंत विशम्भर नाथ मिश्र बेहतरीन पखावज वादक भी है। हाल ही में 29 मार्च को बीएचयू संगीत एवं मंच कला संकाय के कौस्तुभ जयंती समारोह में पद्मश्री ऋत्विक सान्याल का कार्यक्रम हुआ तो ऋत्विक सान्याल ने बतौर संगतकार महंत विशम्भर नाथ मिश्र से पखावज वादन का अनुरोध किया। इतने बड़े कलाकार के अनुरोध को महंत विशम्भर नाथ मिश्र टाल नहीं सके। उनकी यह प्रस्तुति सोशल मीडिया पर वायरल हो गयी और इसी के परिणामस्वरुप पंडित हरि प्रसाद चौरसिया के संज्ञान में यह आया कि अरे जिसे दशकों से जानता हूँ, वह पखावज वादक भी है। उसी समय पंडित जी ने मन ही मन एक जिद्द ठान ली थी कि इस बार संकट मोचन संगीत समारोह में उनके संगतकार महंत विशम्भर नाथ मिश्र ही होंगे।


इधर पंडित हरि प्रसाद चौरसिया की जिद्द से अनभिज्ञ महंत विशम्भर नाथ मिश्र को पिछले साल यानि 101वें आयोजन की घटना को भूले नहीं थे और इस गरज से संकट मोचन संगीत समारोह के 102वें आयोजन का शुभारम्भ ही पंडित हरि प्रसाद चौरसिया के बाँसुरी वादन से कराने का कार्यक्रम घोषित किया।


पिछले साल यानि एक सौ वे आयोजन की घटना को जानने समझने के लिए शताब्दी समारोह (वर्ष 2023) में पंडित हरि प्रसाद चौरसिया की प्रस्तुति को जानना जरुरी है। हुआ यह कि संकट मोचन संगीत समारोह के शताब्दी समारोह (वर्ष 2023) में पांचवी निशा में पंडित हरि प्रसाद चौरसिया की प्रस्तुति सबसे पहले रखी गयी जिसके पीछे विचार यह था कि हरि प्रसाद चौरसिया जी की प्रस्तुति शाम साढ़े सात बजे से हो जाएगी तो वह मंदिर के अतिथि गृह में समय से सो सकेंगे परन्तु प्रस्तुति से लगभग आधे घंटे पहले चौरसिया जी ग्रीन रुम पहुंचे तो उनकी हालत ठीक नहीं थी। मुंह से आवाज तक नही निकल रही थी। ग्रीन रुम में मौजूद लोंग आशंकित थे कि आज की प्रस्तुति कैसे होगी। इन पंक्तियों का लेखक और मेरे मित्र डॉ. प्रकाश चंद गिरि चौरसिया जी के चरण स्पर्श करने जैसे तैसे ग्रीन रुम में पहुंचे तो हम दोनों भी स्तब्ध रह गये। चौरसिया जी ने हाथ हिला कर हम दोनों को आशीर्वाद दिया परन्तु एक शब्द भी उनसे बोला नहीं जा रहा था।





उस दिन की प्रस्तुति के लिए उनके शिष्य विवेक सोनार, शिष्या वैष्णवी को संगत करनी थी परन्तु चौरसिया जी की हालत देख कर वह भी आशंका से घिरे थे। इसी ऊहापोह में चौरसिया जी ने मंच पर ले चलने के लिए हाथ से इशारा किया। संचालक हरे राम जी ने कार्यक्रम प्रारम्भ करने की घोषणा की और व्हील चेयर से चौरसिया जी को मंच तक लाया गया। मंच पर उनके लिए कुर्सी लगाई गयी थी। कुर्सी पर बैठते ही कांपते हाथों से जैसे ही चौरसिया जी ने बांसुरी साधी तो चमत्कार हो गया। लगा ही नहीं कुछ ही समय पहले यही व्यक्ति बोल तक नही पा रहा था। बांसुरी का वही चिरपरिचित माधुर्य, तान और सुरों की साधना ने श्रोताओं को भावों से भर दिया। बीच-बीच में चौरसिया रुकते, कुछ क्षण का विराम फिर साधना का जादू जो श्रोताओं के सिर चढ़ कर बोला। विराम प्रस्तुति में पंडित हरि प्रसाद चौरसिया ने जब हर बार की तरह बांसुरी पर 'ओम जय जगदीश हरे' - की धुन बजाई तो पूरा प्रांगण हर हर महादेव से गूंज उठा।


संकट मोचन मंदिर के महंत विशम्भर नाथ मिश्र ने शताब्दी समारोह की उस घटना को और चौरसिया जी के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए 101वें आयोजन में भारी मन से उन्हें विश्राम देने का निर्णय लिया और उनके स्थान पर उनके भतीजे पंडित राकेश चौरसिया की प्रस्तुति हेतु उनका नाम दिया। महंत मिश्र का यह निर्णय श्रोताओं को खल रहा थी परन्तु संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो० विशम्भर नाथ मिश्र की प्रतिबद्वता से भिज्ञ श्रोताओं ने इसे नयी पीढ़ी को विरासत सौंपने जैसा मान कर अपनी भावनाओं को काबू करने का प्रयास किया। श्रोताओं ने तो जैसे तैसे अपनी भावनाओं पर काबू कर लिया पर एक जुलाई 1938 को इलाहाबाद में जन्मे 86 वर्षीय बांसुरी सम्राट हरि प्रसाद चौरसिया अपनी भावनाओं पर काबू पाने में असमर्थ थे। अपने जीवन में वह 49 साल से अनवरत संकट मोचन संगीत समारोह में अपनी हाजिरी लगा रहे थे। असमंजस की हालत में वह संकट मोचन को याद कर अर्ज लगाते रहे मेरे प्रभु क्या मुझसे अंजाने में ही कोई गलती हो गयी। इसी पशोपेश में हरि प्रसाद चौरसिया दो तीन खोये रहे।


संकट मोचन से अपने तई इस संवाद के चलते जब चौरसिया जी को यह विश्वास हो गया कि संकट मोचन ने हाजिरी लगाने से मनाही नहीं की है तब उन्होंने तुरत फुरत संकट मोचन के महंत प्रो० विशम्भर नाथ मिश्र को फोन लगा कर पूछा कि महंत जी, हमको भूल गये है क्या। जवाब में महंत जी ने उत्तर दिया कि अरे, ऐसा नहीं है। हमको लगा था कि आपकी व्यस्तता है, इसलिए आपको फोन नहीं किया। यह तो आपका ही मंच है। मैं किसी को बुलाने वाला कौन होता हूँ। हनुमान जी ही यहां सबको बुलाते है। उनकी ही प्रेरणा से आपने हमको फोन किया है। महंत विशम्भर नाथ मिश्र का उत्तर सुन कर हरि प्रसाद चौरसिया ने सूचित किया कि वह आयोजन की दूसरी निशा यानि 28 अप्रैल 2024 को संकट मोचन के दरबार में अपनी हाजिरी लगाने आ रहे है।





संकट मोचन संगीत समारोह के 101वें आयोजन की दूसरी निशा 28 अप्रैल 2024 को हरि प्रसाद चौरसिया बिना किसी पूर्व घोषित कार्यक्रम के अपनी दो शिष्याएं शुचि श्वेता चटर्जी, किरण बिष्ट और शिष्य घनश्याम चंद सहित संकट मोचन के दरबार में अपनी पचासवीं हाजिरी लगाने पहुंचे। तबले पर आशीष राघवानी ने सधी हुई संगत की। बांसुरी के उस्ताद के सुर मंदिर प्रांगण के कोने-कोने को भक्ति रस से सराबोर कर रही थी। मध्यम लय में शुद्ध स्वरों का उन्होंने वादन में बेहतरीन प्रयोग किया। आलाप की शुरुआत मंद्र निषाद से की। श्रोताओं का उत्साह और संकटमोचन का मंच देख कर उनमें जैसे नई ऊर्जा का प्रवाह होने लगा। पं. हरि प्रसाद चौरसिया ने 'राग मारुविहाग' की अवतारणा की।


उन्होंने आलाप के बाद जोड़ बजाया। बांसुरी की हर फूंक पर हर कोई बस वाह-वाह कर रहा था। संगीत के सुधिजनों ने संगीत के साधक की हर किसी के अंतस तक बांसुरी की मिठास को महसूस किया। जोड़ बजाने के बाद उन्होंने हर बार की तरह 'ओम जय जगदीश हरे...' की धुन से वादन को विराम दिया। संकट मोचन संगीत समारोह के एक सौ एक वर्ष के इतिहास में किसी कलाकार द्वारा अपनी हाजिरी लगाने की यह अनूठी घटना है।


अब बात 102वें संकट मोचन संगीत समारोह में घटी ऐतिहासिक घटना की। पंडित हरि प्रसाद चौरसिया की ज़िद्द कि 102वें आयोजन में उनके संगतकार के रुप में महंत विशम्भर नाथ मिश्र ही पखावज वादन करेंगे। महंत विशम्भर नाथ मिश्र पेशोपेश में क्या करे, क्या ना करें और पंडित हरि प्रसाद चौरसिया की ज़िद्द। अन्तोगत्वा बाँसुरी सम्राट की ज़िद्द के समक्ष नतमस्तक महंत विशम्भर नाथ मिश्र को नतमस्तक होना पड़ा। संकट मोचन का आंगन पहली प्रस्तुति में मधुवन बना जब हरि (पंडित हरि प्रसाद चौरसिया) की बांसुरी कान्हा बन कर महंत विशम्भर नाथ मिश्र की पखावज रुपी राधा को रिझाने लगी। संकट मोचन के दरबार में सबसे पहले बांसुरी पर राग विहान गूंजा तो परिसर भर में फैले भक्तों, श्रोताओ का जमघट आंगन में लग गया। प्रस्तुति के दौरान पंडित हरि प्रसाद चौरसिया ने तीन बार बांसुरी बदली, उनके होठों के कंपन भी सुर बन जा रहे थे। अपनी चिर परिचित शैली में प्रस्तुति का समापन 'ओम जय जगदीश हरे...' की धुन से पंडित हरि प्रसाद चौरसिया ने किया।


इन पंक्तियों के लेखक ने पंडित हरि प्रसाद चौरसिया से पूछा कि संकट मोचन मंदिर में आपकी 51वी हाजिरी लग चुकी है तो पंडित जी ने कहा कि जब तक सृष्टि रहेगी तब तक संकट मोचन संगीत समारोह हजारों हजार साल तक होता रहेगा और संकट मोचन मुझे जब तक बुलाते रहेंगे, मेरी क्या औकात, मैं तो हाजिरी लगाने जाता ही रहूंगा, बस अब हर बार संगतकार के रुप में पखावज महंत ही बजायेगें।


राजेन्द्र शर्मा


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मोबाइल : 09891062000

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