यतीश कुमार की किताब बोरसी भर आँच की उर्मिला शिरीष द्वारा की गई समीक्षा
जीवन की एक खुबसूरती यह है कि यहां पर संघर्ष है। संघर्ष के बिना जीवन की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती। संघर्ष जीवन को निखारने का काम करता है। कबीर याद आ रहे हैं। उनका एक दोहा है - जिन खोजा तिन पाईयां, गहरे पानी पैठ। मैं बपुरा बूड़न डरा, रहा किनारे बैठ।। अनुभवों से निःसृत यह दोहा जीवन संघर्ष के बारे में सब कुछ बयां कर देता है। कवि यतीश कुमार का जीवन भी संघर्षमय रहा है। अपने इस संघर्ष को उन्होंने अपनी किताब 'बोरसी भर आंच' में कलमबद्ध किया है। उर्मिला शिरीष ने इस किताब की पड़ताल करते हुए एक समीक्षा लिखी है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं यतीश कुमार की किताब 'बोरसी भर आँच' की उर्मिला शिरीष द्वारा की गई समीक्षा ' अनकही वेदना, बैचेनी और स्मृतियों से भरे अतीत का सैरबीन'। अनकही वेदना, बैचेनी और स्मृतियों से भरे अतीत का सैरबीन उर्मिला शिरीष लंबे अरसे बाद संस्मरण की एक ऐसी किताब पढ़ी, जिसको पढ़ने के बाद मन एक अनकही वेदना, बैचेनी और स्मृतियों से भर उठा है। सोचा ऐसा क्या है इस बोरसी भर आँच अतीत की सैरबीन में जो भीतर तक जा कर झनझना रहा है। कितने लोगों का बचपन विकट संकट