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विजय गौड़ की कहानी 'कूड़े का पहाड़'

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  विजय गौड़ एक अजीब सा समय है यह । धर्म के नाम पर आप कब माब लिंचिंग के शिकार बन जाएँ, कब आपकी हत्या कर दी जाय, इसका कोई ठिकाना नहीं । सावन का महीना जो कभी बादल, बारिश, कजरी, झूले, धान की रोपाई आदि आदि के लिए जाना जाता था, अब कांवर यात्रा और कांवरियों के आतंक के लिए जाना जाता है । धर्म किस तरह उन्माद बन जाता है कांवर यात्रा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है । अब सावन के महीने में रास्ते ही नहीं, नेशनल हाईवे तक गाड़ियों के लिए पूरी तरह बन्द कर दिए जाते हैं । तोड़-फोड़ और मारपीट जैसे कांवरियों के धार्मिक कृत्य का ही अंग हो गया है । जिस धर्म का उद्देश्य मानवता की रक्षा था अब वह पूरी तरह अमानवीय लोगों के हाथ में आ गया है । कौन क्या बोले-लिखे, यह सब अब धर्म के ये ठेकेदार ही निर्धारित करेंगे । अब धर्म की आलोचना के लिए कोई जगह नहीं है । कबीर दास आज अगर होते तो उन्हें अपने दोहे कहने के पहले हजार बार सोचना पड़ता । विजय गौड़ की यह कहानी ‘कूड़े का पहाड़’ धार्मिक विकृति की तफ्शीश करती है और इस खौफनाक मंजर को साफगोई से हमारे सामने रखती है । तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं विजय गौड़ की कहानी