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ओम निश्चल का ललित निबंध 'फिरि घन उमड़ि घुमड़ि घिरि आए!'

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भारतीय जनजीवन में सावन भादो के महीने का अच्छा खासा महत्व है। और हो भी क्यों नहीं, नेह नाता जोड़ने का मौसम जो ठहरा। किसानों की आँखें इस मौसम में बादलों की बाट जोहती रहती है। बारिश की फुहारों के बीच प्रियतमा अपने प्रेमी के आने का इंतज़ार करती है जो उससे शादी करने के बाद ही कमाई धमाई के चक्कर में आन देश चला गया है। भीगी धरती की सोंधी महक मन को उन्मत्त कर देती है। यूँ ही ये सावन भादो लोक गीतों की पुख्ता आवाज नहीं बने। कवि गीतकार ओम निश्चल ने अपने ललित निबंध 'फिरि घन उमड़ि घुमड़ि घिरि आए!' के जरिये बखूबी इस मौसम की एक पड़ताल की है। आइए पहली बार पर आज पढ़ते हैं ओम निश्चल का यह ललित निबन्ध। इसे हमें उपलब्ध कराया है युवा कवि श्रीधर दुबे ने। फिरि घन घुमड़ि-घुमड़ि घिरि आये ! बदरिया बरसै रस की बूँद ओम निश्‍चल   ज़मीन पर गिरती फुहारें और ऊपर बादलों का सिलसिला। पानी रिमझिम-रिमझिम बरसता हुआ। पूरे वातावरण को सर्द हवाओं ने समेट-सा लिया है और आकाश में तिरते हुए से मेघ जैसे अभिशप्‍त यक्ष का प्रेम-भरा नाजुक संदेश उसकी प्रिया के पास सहेज कर लिए जा रहे हैं। मेघदूत के छंद ...