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यादवेन्द्र का आलेख 'ऐ आदमी, हमें छोड़ न जइयो'

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  प्रफुल्ल राय  मनुष्य इसीलिए मनुष्य है कि संकट में पड़े किसी दूसरे मनुष्य को देख कर उसकी मदद के लिए वह बेतकल्लुफी से अपने हाथ आगे कर देता है। इसी खूबी की वजह से मनुष्य में उस सामूहिकता की भावना का विकास हुआ जिसने उसे दुनिया का सबसे ताकतवर प्राणी बना दिया। इस बार अपने कॉलम के अन्तर्गत यादवेन्द्र ने प्रफुल्ल रॉय की एक उम्दा कहानी "मानुष" की चर्चा की है जिस पर बांग्ला के सम्मानित फिल्मकार तपन सिन्हा ने 1983-84 के आस-पास एक घंटे से भी कम अवधि की बिहार की अंगिका भाषा में "आदमी और औरत" नामक एक यादगार टेलीफ़िल्म बनाई। अपने कॉलम के अन्तर्गत यादवेन्द्र टिप्पणी करते हुए लिखते हैं "कुछ-कुछ समय बाद मैं इस फिल्म को फिर फिर देखता हूं और हर बार उतना ही चकित और इंसानियत के बुनियादी सरोकारों को ले कर आश्वस्त होता हूं जैसे पहली बार देख रहा हूं। जिस बात ने मुझे इस कहानी/ फिल्म के साथ इस तरह बांध दिया वह एक आवारा किस्म के युवक के बीच जंगल एक अकेली दुखियारी गर्भवती स्त्री के मिल जाने पर बिना किसी के कुछ कहे अचानक जिम्मेदार बन जाने की बात है।" वाकई मनुष्य के अंदर जब तक  बुनिया...