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मनोज कुमार पांडेय का आलेख ‘शहरी जीवन के त्रास की कहानियाँ’

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रवींद्र कालिया आज रवींद्र कालिया का जन्म दिन है। कालिया जी की ख्याति साठोत्तरी कथाकार के रुप में तो है ही एक सम्पादक के रुप में कालिया जी को यह श्रेय है कि उन्होने युवा लेखको की ऐसी पीढी तैयार की जिन्होने अपने लेखन से हिंदी साहित्य को काफी हद तक प्रभावित किया है। बहरहाल कालिया जी के कहानीकार रुप की एक विशद पडताल की है चर्चित युवा कथाकार मनोज कुमार पांडेय ने। कालिया जी को नमन करते हुये आज पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं मनोज कुमार पांडेय का आलेख ‘ शहरी जीवन के त्रास की कहानियाँ ’ ।   शहरी जीवन के त्रास की कहानियाँ मनोज कुमार पांडेय ‘वास्तव में, सन साठ के बाद के कहानीकारों की पीढ़ी वह युवा पीढ़ी है, जिसने बहुत कम समय के लिए परतंत्र भारत को देखा, जिसका पालन-पोषण और विकास स्वतंत्र भारत में हुआ। इससे पूर्व कि यह पीढ़ी स्वतंत्रता के सही अर्थ या मूल्य को पहचान पाती, उसने अपने चारों ओर भ्रष्टाचार, जातिवाद, भाई-भतीजावाद, प्रांतीय संकीर्णताओं, गुटबंदी, बेरोजगारी, नौकरशाही के घृणित परिणाम ही देखे और अपने को बीस तरह के निषेधों से घिरा पाया। उसे यह...