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जितेन्द्र श्रीवास्तव के कविता संग्रह 'कायान्तरण' पर मनीषा जैन की समीक्षा

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जितेन्द्र श्रीवास्तव युवा कविता में एक सुपरिचित नाम है. अभी-अभी उनका एक और कविता संग्रह 'कायान्तरण' आया है. इस संग्रह की समीक्षा कर रही हैं युवा कवियित्री मनीषा जैन. तो आईए पढ़ते हैं यह समीक्षा    कायान्तरण से आगे आत्मान्तरण की कविताएं मनीषा जैन कविता का स्वभाव जहां सरल, कोमल व शांत होता है वहीं वह जीवन के यथार्थ भावों का सहज उच्छलन होता है। कविता के द्वारा ही कवि की जीवन-दृष्टि, सामाजिक सरोकार, लोक के प्रति समर्पण जैसे भावों के दर्शन होते हैं। यही समाज में कवि का स्थान नियुक्त करते हैं तथा मनुष्यता का बोध कराते हैं। सुचर्चित युवा कवि-आलोचक जितेन्द्र श्रीवास्तव की कविताएं भी आज के समय में मनुष्यता को व्यक्त करती हैं। आज की ‘दो मिनट नूडल्स वाली दुनिया’ में ये कविताएं जीवन में स्थिरता व सकारात्मकता प्रदान करती हैं। जितेन्द्र श्रीवास्तव की नई कविताओं का संग्रह ‘कायांतरण’ बिल्कुल नए भाव-बोध, नए बिम्ब ले कर आया है। ये कविताएं किसी परिपाटी के सांचे में नहीं, बल्कि बिल्कुल प्राकृत रूप से रची गई हैं तथा समाज को नया विस्तार व विकास देती हैं। इन कविताओं में जीवनानुभव का विशाल ...

मनीषा जैन की कविताएँ

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नाम- मनीषा जैन जन्म- 24 सितम्बर, 1963 मेरठ उ.प्र. शिक्षा- बी. ए दिल्ली विश्वविद्यालय,     एम. ए. हिन्दी साहित्य प्रकाशित रचनाएं- एक काव्य संग्रह प्रकाशित ‘‘रोज गूंथती हूं पहाड़’’।             नया पथ, कृति ओर, अलाव, वर्तमान साहित्य, मुक्तिबोध, बयान, साहित्य भारती, जनसत्ता, रचनाक्रम, जनसंदेश, नई दुनिया, अभिनव इमरोज, युद्धरत आम आदमी आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं, आलेख, समीक्षायें प्रकाशित हताशाओं के विकट दौर में हमारी स्त्रियों ने हमें थाम रखा है. खुद अमानवीय यंत्रणाएं भुगतते हुए स्त्रियाँ बचाने का ये कार्य अनवरत करती जा रही हैं. वे प्यार की बारिस में अपना सब कुछ लुटाने के लिए तैयार हैं. यह समर्पण पुरुष जाति में आम तौर पर नहीं दिखाई पड़ता. मनीषा जैन ऐसी ही कवियित्री हैं जिन्होंने अपनी छोटी-छोटी कविताओं में ऐसे कई बिम्ब उठाये हैं जो हमें एकबारगी चकित नहीं करते हैं. इसलिए क्योंकि ये बिम्ब कोई दूर की कौड़ी नहीं बल्कि हमारे बिल्कुल आस-पास के हैं. बिल्कुल अपने जैसे लगते हैं. यहाँ  हाड़-तोड़ परिश्रम के बावजूद वह जो एक हँसी ...

मनीषा जैन के कविता संग्रह 'रोज गूंथती हूं पहाड़' पर बली सिंह की समीक्षा

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कवियित्री मनीषा जैन का बोधि प्रकाशन से हाल ही में एक संग्रह आया है 'रोज गूंथती हूं पहाड़.' अपने इस संग्रह में मनीषा जैन ने बिना किसी शोरोगुल के स्त्री जीवन के यथार्थ को सामने रखने का सफल प्रयत्न किया है. इसीलिए यह संग्रह और संग्रहों से कुछ अलग बन पड़ा है. इस संग्रह की एक समीक्षा लिखी है बली सिंह ने. तो आईए पढ़ते हैं यह समीक्षा.      स्त्री केंद्रित सौंदर्य बोध बली सिंह आज हम जिस दौर में जी रहें हैं , वह वास्तव में संक्रमण का दौर है। ऐसे समय में बहुत सारी चीजें एक साथ घटित होती हैं। अनेक अस्मिताएं उभरती हैं तो कई ख़त्म भी होती हैं। यह लोकरूपों के ख़त्म होते जाने का दौर है। एक तरफ़ विकास है जो कि हमारे समय का एक नया आख्यान है , तो दूसरी ओर बड़े पैमाने पर विस्थापन घटित हो रहा है। मनुष्य ही नहीं वरन् प्रकृति के अनेक रूप यानी पशु-पक्षी , पेड़-पौधे , नदी-नाले और पहाड़ भी विस्थापन की प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं। यही नहीं , इस दौर में तमाम चीज़ों पर , चाहे पहले की हों या अब की , पुनरावलोकन किया जा रहा है , संबधों पर नये सिरे से सोचा जा रहा है। निजी इच्छाओं-आकांक्षाओं यान...