संदेश

अप्रैल, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रोफेसर ओ. पी. जायसवाल का आलेख ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में साम्प्रदायिकता - एक विश्लेषण

चित्र
प्रोफेसर ओ. पी. जायसवाल इतिहास ऐसा विषय है जो हमारे सामने तमाम तरह की असुविधाएँ  खड़ी करता है। यह अतीत का अध्ययन करता है और साक्ष्यों पर आधारित होता है। इसलिए इसे बदला नहीं जा सकता। साम्प्रदायिकता भारतीय इतिहास की एक बड़ी समस्या रहा है। ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स मिल ने भारतीय इतिहास का साम्प्रदायिक विभाजन कर इसकी नींव रख दी थी। आगे चल कर हम भारतीय इतने अधिक और कट्टर हिन्दू मुसलमान हो गए, कि साथ रह पाना नामुमकिन लगने लगा। इसका खामियाजा विभाजन की त्रासदी के रूप में हमें भुगतना पड़ा। आज भारत जिस मोड़ पर खड़ा है, यह समस्या एक बार फिर सिर उठाए खड़ी नज़र आ रही है। इतिहास के वरिष्ठ प्रोफेसर ओ पी जायसवाल ने अपने आलेख 'ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में साम्प्रदायिकता का विवेचन' में इस समस्या का वस्तुनिष्ठ विश्लेषण किया है। आइए आज पहली बार पढ़ते हैं  प्रोफेसर ओ पी जायसवाल का आलेख 'ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में साम्प्रदायिकता का विवेचन'।   ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में साम्प्रदायिकता - एक विश्लेषण   प्रोफेसर ओ. पी. जायसवाल साम्प्रदायिकता एक कैन्सर है, जिसकी जड़ें इतिहास की विकृतियों में हैं। साम्प्रदायिकता

हंगेरियन कवि इश्तवान वोरोश की कविताएँ

चित्र
इश्तवान वोरोश इस दुनिया में हर चीज की एक छाया होती है। यहाँ तक कि बात, विचार और यथार्थ की भी छाया होती है। और इन छायाओं के लिए हम एक साक्षी होने के नाते खुद भी जिम्मेदार होते हैं। यह जो छाया होती है, वह भी अपनी एक चुनौती प्रस्तुत करती है। उन वास्तविकताओं के लिए जो खुद पर इतराती फिरती हैं। दरअसल यह उस स्वायत्तता की कवायद करती है जो हरेक को उसकी सीमा का बोध कराती है। हंगेरियन कवि इस्तवान वोरोश इन छायाओं की सूक्ष्मता की तस्दीक करते हैं। आज पहली बार पर प्रस्तुत है हंगेरियन कवि इस्तवान वोरोश की कविताएँ। वोरोश की कविताओं का हिन्दी में सहज अनुवाद किया है हिन्दी की चर्चित कवयित्री पंखुरी सिन्हा ने। हंगेरियन कवि इश्तवान वोरोश की कविताएँ (अनुवाद - पंखुरी सिन्हा) भीतर का कमरा  आत्मा के भीतर का कमरा  कोई गुसलखाना नहीं  फिर भी, उसमें एक  पुराना बाथ टब है!  ज़ाहिर है कि कोई  तरीका नहीं इस टब में  कहीं से भी पानी ले जाने का  लेकिन, आप बैठ सकते हैं  उसमें! हर कोई आता है यहाँ  अपनी दुल्हन, अपने दूल्हे के साथ!  पारदर्शी हो उठता है  मोटा आवरण!  साफ़ हो जाता है प्यार का मतलब!  साबुन के बुलबुले की तरह  विस्फ

सोमेश पाण्डेय की कविताएं

चित्र
सोमेश पाण्डेय   नाम - सोमेश पांडेय जन्म - 25/02/1995 जन्मस्थान - प्रयागराज प्रयागराज में मेरा बचपन बीता, 12वीं तक की पढ़ाई प्रयागराज में ही हुई।  2013 में आई आई टी रूड़की में सिविल इंजीनीयरिंग के कोर्स में दाखिला लिया और 2017 में यहीं से बी. टेक. की डिग्री प्राप्त की।  अभी मैं सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग, उत्तर प्रदेश में सहायक अभियंता के पद पर कार्यरत हूँ।  कॉलेज में मैंने 'क्षितिज' - आई. आई. टी. रूड़की की साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन भी किया, एवं कैंपस में साहित्य का प्रचार प्रसार करने के लिए 'काव्यंजलि' काव्य गोष्ठी का आयोजन किया।   हर शुरुआत एक उत्सुकता से भर देती है। हर अन्त कुछ विषाद भर देता है। यह हम सबके लिए स्वाभाविक है। लेकिन प्रकृति का यही नियम है। चलते रहने का यही तरीका है। सोमेश पांडेय नवोदित कवि हैं। नवोदित होने के चलते ही उनकी कविताओं में एक नवीनता है, ताजगी है। जैसे जैसे वे कविता की राह पर आगे बढ़ेंगे, काव्य चुनौतियों से जूझना सीखेंगे। उनकी कविताएँ पढ़ते हुए यह स्पष्ट होता है कि कवि के पास विषय है। कहने का तरीका भी है। निश्चित रूप से यह कवि दूर का रास्