सुनील कुमार पाठक का आलेख 'दिल्ली के बड़का अस्पताल में नर्स से जे कहले एगो भोजपुरिया बूढ़ऊ'

अपनी बोली भाषा किसे प्रिय नहीं होती। अपनी भाषा में ही हमें जीवन की गहनतम अनुभूतियां प्राप्त होती हैं। केदार नाथ सिंह हिन्दी के महत्त्वपूर्ण कवि रहे हैं। लेकिन अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने यह बात कही थी कि मैं चाहता हूं कि मेरा अन्तिम कविता संग्रह भोजपुरी में प्रकाशित हो। इसका आशय यह है कि वे भोजपुरी में कविताएं जरूर लिखते रहे होंगे। सदानंद साही उनके निकटस्थ लोगों में से रहे हैं। उन्होंने केदार जी की दो भोजपुरी कविताएं उनके मृत्यु के उपरान्त अपनी पत्रिका 'साखी' में प्रकाशित की। केदार जी की इन भोजपुरी कविताओं के भी गहरे निहितार्थ हैं। इन भोजपुरी कविताओं को आधार बना कर एक आलेख लिखा है सुनील कुमार पाठक ने। बीते 19 मार्च को केदार जी की पुण्यतिथि थी। उनकी स्मृति को नमन करते हुए आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं केदार नाथ सिंह की भोजपुरी कविताओं पर सुनील कुमार पाठक का आलेख 'दिल्ली के बड़का अस्पताल में नर्स से जे कहलें एगो भोजपुरिया बूढ़ऊ'। 'दिल्ली के बड़का अस्पताल में नर्स से जे कहले एगो भोजपुरिया बूढ़ऊ' सुनील कुमार पाठक "ना, हमरा के दवाई मत...