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ललन चतुर्वेदी का आलेख 'कमीज के बाहर आदमी और तमीज के बाहर भाषा नग्न हो जाती है'

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  संगत में ज्ञानरंजन के एक साक्षात्कार को ले कर हिन्दी साहित्य जगत में वाद विवाद की स्थिति बनी हुई है। कोई भी व्यक्ति आलोचना की परिधि से बाहर नहीं है। लेकिन इसका भी एक दायरा है। ज्ञानरंजन का पक्ष ले कर  किसी ने अंजुम शर्मा से आपत्तिजनक चैटिंग की है। इन सब का समर्थन नहीं किया जा सकता। और कुछ नहीं तो भाषा में तो थोड़ी शालीनता की अपेक्षा की ही जा सकती है। इस मुद्दे को ले कर कल हमने प्रचण्ड प्रवीर का आलेख प्रस्तुत किया था। इसी कड़ी में आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं कवि  ललन चतुर्वेदी का आलेख 'कमीज के बाहर आदमी और तमीज के बाहर भाषा नग्न हो जाती है'। 'कमीज के बाहर आदमी और तमीज के बाहर भाषा नग्न हो जाती है'        (संदर्भ : संगत का 100 वां एपिसोड और हिन्दी जगत की प्रतिक्रियाएं)                                                                  ललन चतुर्वेदी  संगत का 100 वां एपिसोड पूरा करते हुए हिन...

प्रचण्ड प्रवीर का आलेख 'ह्युमिलिटी और ज्ञानरञ्जन'

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ज्ञानरञ्जन रवीन्द्र कालिया,  ज्ञानरञ्जन ,  दूधनाथ सिंह और काशीनाथ सिंह  साठोत्तरी कहानी के प्रमुख स्तम्भ माने जाते हैं। यह अलग बात है कि  ज्ञानरञ्जन  ने कुछ कहानियां लिखने के पहचान 'पहल' नामक पत्रिका की शुरुआत कर दी। इस क्रम में उनका कहानी लेखन स्थगित हो गया। इस स्थगन में एक लेखकीय ईमानदारी भी देखी जा सकती है। हाल ही में 'हिन्दवी' द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम 'सङ्गत' के सौंवे एपिसोड में ख्यातिलब्ध प्रतिष्ठित कथाकार-सम्पादक ज्ञानरञ्जन का साक्षात्कार लिया गया जिसमें उन्होंने कुछ बेबाक बातें की। अपनी एक कहानी को बेहतरीन कहानी बताया और अपने कुछ समकालीनों की कड़ी आलोचना भी की। इसे ले कर हिन्दी समाज में उठापटक जारी हो गई है। इस क्रम में  ज्ञानरञ्जन  पर आक्रामक प्रहार किए जा रहे हैं और उन्हें ह्युमिलिएट भी किया जा रहा है। हिन्दी समाज में अपने वरिष्ठ के प्रति यह व्यवहार कोई नई बात नहीं है। प्रचण्ड प्रवीर ने अपने एक आलेख में इस मुद्दे की तार्किक तहकीकात की है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  प्रचण्ड प्रवीर का आलेख 'ह्युमिलिटी और ज्ञानरञ्जन'। ह्युमिलिटी...

सूरज पालीवाल का संस्मरण 'ज्ञानरंजन होने के मायने'

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  ज्ञानरंजन हिन्दी साहित्य में कुछ ही ऐसे व्यक्तित्व हैं जो अपने स्पष्ट विचारों के लिए जाने जाते हैं। ज्ञानरंजन ने लेखन से कभी समझौता नहीं किया। कम लिख कर भी हिन्दी कहानी की दुनिया में उन्होंने अपना समादृत स्थान बनाया है। यह स्थान उन्होंने खुद अपने दम पर हासिल किया। प्रख्यात रचनाकार श्री रामनाथ सुमन जी के पुत्र होने के बावजूद उन्होंने लेखकीय संघर्ष किया और अपनी दुनिया खुद बनाई। उन्होंने देश की बेहतरीन हिन्दी पत्रिका पहल का सम्पादन किया जिसमें छपना हर छोटे बड़े लेखक का सपना हुआ करता था। यही नहीं उन्होंने हर जेनुइन लेखक को प्रोत्साहित करने का काम भी किया। उनका कद आज भी  ऊंचा है। किन्तु परन्तु का सामना उन्हें भी करना पड़ा फिर भी यह कहा जा सकता है कि वे हिन्दी साहित्य के निर्विवाद लेखक हैं। कथाकार योगेंद्र आहूजा तो ज्ञान जी को ‘हिंदी कहानी का आखिरी उस्ताद’ घोषित करने से नहीं चूकते हैं।’ आलोचक सूरज पालीवाल ने ज्ञान जी के विविध पक्षों को उजागर करते हुए एक बेजोड़ संस्मरण लिखा है। यह आलेख धरती के हालिया अंक में प्रकाशित हुआ है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं सूरज पालीवाल का स...

ज्ञानरंजन की कहानी 'पिता'

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ज्ञानरंजन सबके जीवन में पिता के लिए अहम स्थान होता है। दुनिया का हर पिता अपनी सन्तान के लिए एक आदर्श होता है। भले ही वह भूखा रहे लेकिन अपनी सन्तान को हर वक्त प्रफुल्लित देखना चाहता है। यही नहीं वह अपने लिए हर कटौती कर अपनी सन्तान को हर सुख सुविधा उपलब्ध कराने में जुटा रहता है। साठोत्तरी कहानी के प्रमुख स्तम्भ ज्ञानरंजन ने कम लेकिन यादगार कहानियां लिखीं हैं। 'पिता' उनकी सर्वाधिक चर्चित और मर्मस्पर्शी कहानी है। आज ज्ञानरंजन का जन्मदिन है। जन्मदिन की बधाई देते हुए आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं ज्ञानरंजन जी की कहानी 'पिता'। पिता ज्ञानरंजन उसने अपने बिस्तरे का अंदाज लेने के लिए मात्र आध पल को बिजली जलाई। बिस्तरे फर्श पर बिछे हुए थे। उसकी स्त्री ने सोते-सोते ही बड़बड़ाया, ‘आ गए’ और बच्चे की तरफ करवट ले कर चुप हो गई। लेट जाने पर उसे एक बड़ी डकार आती मालूम पड़ी, लेकिन उसने डकार ली नहीं। उसे लगा कि ऐसा करने से उस चुप्पी में खलल पड़ जाएगा, जो चारों तरफ भरी है, और काफी रात गए ऐसा होना उचित नहीं है। अभी घनश्यामनगर के मकानों के लंबे सिलसिलों के किनारे-किनारे सवारी गाड़ी धड़ध...