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आशीष तिवारी की कविताएं

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आशीष तिवारी किसी भी समय के कवि की प्रतिबद्धता अपने समय और समाज के प्रति होती है। हिन्दी कविता के तमाम ऐसे युवा स्वर हैं जो अपनी प्रतिबद्धता से हमें आश्वस्त करते हैं। आशीष में एक परिपक्व इतिहास बोध भी दिखायी पडता है। अपनी कविता ' इतिहास का भूत ' में आशीष लिखते हैं : ' इतिहास आईना है/ जितना धूमिल करोगे/ उतने भटके हुए लगोगे वैश्विक मंचों पर। ' आशीष तिवारी ऐसे ही एक कवि हैं जिनकी कविताओं में पक्षधरता स्पष्ट है। आज पहली बार पर प्रस्तुत है युवा कवि आशीष तिवारी की कविताएँ।   आशीष तिवारी की कविताएं इतिहास का भूत इतिहास के प्रति घृणा फैलाने वाला , उसे नकारने वाला , तब भयभीत हो जाता है , जब उसके सजाये रंगीन मंचों पर इतिहास मुंह चिढ़ाने लगता है इतिहास के आख्यान गम्भीर और चिंतनपरक होते हैं इनका मज़ाक उड़ाने वाला मदारी जैसा दिखने लगता है कभी-कभी उसका हाथ   अपने से बड़े मदारी के हाथ में जाता है   तो वह खुद को मदारी के बंदर जैसा उछलता भी पाता है इतिहास आईना है जितना धूमिल करोगे उतने भटके हुए लगोगे वैश्विक मंचों पर

अनिल कुमार राय का आलेख 'कवि के विचार गद्य में समय और साहित्य'

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केदार नाथ सिंह केदार नाथ सिंह न केवल अपने समय के शीर्ष कवि रहे हैं बल्कि उन्होंने हिन्दी साहित्य के चिन्तन पक्ष पर भी शिद्दत से विचार किया है। केदार जी का गद्य पढ़ते हुए हमें काव्यात्मक अनुभूति होती है। कहीं कोई बोझिलता या जटिलता नहीं। वे कठिन से कठिन बात यहाँ तक कि दर्शन की बात तक को आम बोल चाल की भाषा में लिख देने वाले कलमकार रहे हैं। केदार जी के विचार गद्य पर एक महत्वपूर्ण आलेख लिखा है प्रोफेसर अनिल राय ने। यह आलेख साखी के केदार नाथ सिंह विशेषांक में प्रकाशित हुआ है। आज 19 नवम्बर को केदार जी का जन्म दिन है। केदार जी को नमन करते हुए आज पहली बार पर प्रस्तुत है अनिल कुमार राय का आलेख ' कवि के विचार गद्य में समय और साहित्य ' ।                       कवि के विचार-गद्य में समय और साहित्य     अनिल कुमार राय         केदार नाथ सिंह के साहित्य–विषयक विचार-गद्य के सम्बन्ध में साहित्य के अध्येताओं के मन में एक स्वाभाविक-सी उत्सुकता और दिलचस्पी बनी रहती है कि अपने कवि-कर्म से, अपनी दृष्टि, संवेदना और अभिव्यक्ति से अपने रचना–समय और कवित