भरत प्रसाद के उपन्यास पर सुनील कुमार शर्मा की समीक्षा 'छात्र राजनीति की निस्सारता'
कम रचनाकार ही ऐसे होते हैं जो एक साथ साहित्य की विविध विधाओं में एक साथ साधिकार लेखन करते हैं। भरत प्रसाद ऐसे ही रचनाकार हैं जिन्होंने की विविध विधाओं में स्तरीय लेखन किया है। कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना, संस्मरण जैसी विधाओं में वे लगातार आवाजाही करते रहे हैं। हाल ही में उनका एक नया उपन्यास 'काकुलम' प्रकाशित हुआ है। इस उपन्यास की एक समीक्षा लिखी है कवि आलोचक सुनील कुमार शर्मा ने। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं भरत प्रसाद के उपन्यास काकुलम पर सुनील कुमार शर्मा द्वारा लिखी गई समीक्षा 'छात्र राजनीति की निस्सारता' । 'छात्र राजनीति की निस्सारता' सुनील कुमार शर्मा कोई भी साहित्यिक कृति सामजिक जीवन से अलग हो कर सार्थक नहीं बन सकती। साहित्यकार की निजी विचारधारा सामाजिक परिवेश से प्रेरित एवं प्रभावित रहती है। आधुनिक जीवन के जटिलतर यथार्थ कि अंदरूनी हकीकतों को उसकी पूरी जैविकता के साथ संप्रेषित करने की क्षमता, साहित्यिक विधाओं में उपन्यास को प्राप्त है। सद्यः प्रकाशित उपन्यास '