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प्रशान्त पाठक की कविताएँ

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आज जब व्यापक पैमाने पर नफरतों का कारोबार किया जा रहा हो, एक दूसरे के बीच घृणायें फैलायीं जा रहीं हो, रचनाकार अपनी रचनात्मक सोच जारी रखे हुए हैं. यह दुनिया के लिए एक भरपूर उम्मीद है. घटाटोप अन्धकार के बीच प्रकाश के ये जुगनू अपनी कोशिशें लगातार जारी रखते हैं. इन्हें तमाम हताशाएं भी हताश नहीं कर पातीं. तमाम पराजएँ भी पराजित नहीं कर पातीं. प्रशान्त पाठक ऐसे ही कवि हैं जो चाहते हैं कि ‘रिश्तों की गर्माहट/ महसूस होती रहे/ हृदय के किसी गहरे तल तक/ माथे पर छलक आया पसीना/ घबराहट का नहीं/ मेहनत का हो/ आंखों से एक दूसरे को देख/ आंसू ही टपके/ खून नहीं ... ...’ प्रशान्त की इधर की कविताओं में निखार स्पष्ट तौर पर दिख रहा है. आज पहली बार पर प्रशान्त की बिल्कुल टटकी कविताएँ देते हुए यह अहसास हो रहा है कि ‘बेहतरीन कविताएँ हमेशा टटकी होती हैं.’ अब प्रशान्त ने कवियों की दुनिया में अपने कदम रख दिए हैं. उनकी जिम्मेदारियाँ निश्चित रूप से बढ़ गयी हैं. इस युवा कवि का स्वागत करते हुए हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं इनकी कविताएँ.               प्रशान्त पाठक की कविताएँ सिर्फ होना चाहिए इतना

आमिर सिद्दीकी की कहानी 'बोर्डर' (अनुवाद : संदीप मील)

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आमिर सिद्दीकी आम तौर पर भारत और पाकिस्तान का परिवेश लगभग एक जैसा दिखाई पड़ता है। कृत्रिम तौर पर दोनों देशों का बँटवारा जरुर कर दिया गया लेकिन वह परिवेश और प्रवृति आज भी कमोबेश दोनों मुल्कों में एक जैसी है। कट्टर प्रवृति , पिछड़ापन , गरीबी और अराजकता जैसे दोनों देशों की साझी नियति है। यही नहीं भ्रष्टाचार के मामले में भी कोई किसी से कम नहीं वाली स्थिति में है। आमिर सिद्दीकी पाकिस्तान के चर्चित रचनाकार , और ब्लागर हैं। यही नहीं वे इन दिनों हिन्दी और उर्दू के बीच एक पुल बनाने का काम कर रहे हैं। इस क्रम में वे हिन्दी और उर्दू के चर्चित रचनाकारों की रचनाएँ अनुवाद कर पाठक वर्ग के सामने प्रस्तुत करते हैं। इन दिनों वे उस कहानी विधा पर महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं जिसमें तीस शब्दों की सीमा सुनिश्चित होती है। कविता की भाषा में कहें तो लगभग जापानी ‘हाईकू’ के अंदाज जैसा ही। ‘हाईकू’ में भी कुल तीन पंक्तियों में कविता पूरी हो जाती है। आमिर की इसी तरह की एक कहानी ' बोर्डर ' का अनुवाद किया है चर्चित युवा कथाकार संदीप मिल ने। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं आमीर सिद्दीकी की कहानी ' ब

भूमिका द्विवेदी अश्क की कहानी ‘मायूस परिन्दे’

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भूमिका द्विवेदी अश्क  किसी भी राज्य का पहला दायित्व यह होता है कि वह अपने राज्य की सीमा के अंतर्गत आने वाले सभी लोगों के जान-माल की हिफाजत करे और उन्हें सुकून से रहने का वातावरण प्रदान करे। लेकिन जब राज्य और उसकी सँस्थाएँ अपना कर्तव्य भूल कर कट्टरपन्थी जमात को संतुष्ट करने के लिए भेदभावकारी रवैया अपनाने लगती हैं तब दिक्कतें उठ खड़ी होती हैं। जिस पुलिस, प्रशासन से व्यक्ति न्याय की उम्मीद करता है अगर वही रक्षक की जगह भक्षक की भूमिका निभाने लगे तो...? यह ‘तो’ आज भी एक यक्ष प्रश्न की तरह है। युवा कथाकार भूमिका द्विवेदी अश्क इस कहानी में इन्हीं सवालों से टकराती हैं। इस कहानी में पुलिस की उस उदंडता और क्रूरता का बेबाक वर्णन है जो अल्पसंख्यकों में सुरक्षा की बजाए असुरक्षा की भावना को ही बढ़ावा देता है। ऐसे तत्वों से उनके सामान्य कर्तव्य क्या सामान्य इंसानियत की अपेक्षा तक नहीं की जा सकती। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं भूमिका द्विवेदी की कहानी ‘मायूस परिन्दे’।             मायूस परिंदे भूमिका द्विवेदी अश्क दंगा अपने पूरे शबाब पर था। सरकारी दफ़्तर, इमारतें, गाड़ियां धू