महकती रहेगी ‘बातां री फुलवारी’

विजय दान देथा का पिछले दिनों 10 नवम्बर 2013 को निधन हो गया। देथा जिन्हें हम प्यार से 'विज्जी' कहते थे पर एक श्रद्धांजलि आलेख भेजा है हमारे मित्र मूलतः बीकानेर के मनमोहन लटियाल ने। प्रस्तुत है यह आलेख। मृत्यु एक शाश्वत सत्य है और उससे किसी न किसी दिन हम सबको रूबरू होना ही होगा। पिछले एक महीने में कई महान् विभूतियों को मृत्यु ने अपने आगोश में लिया है जिससे एकबारगी हिन्दी साहित्य रिक्त सा हो गया है। इस क्रम में राजेन्द्र यादव, परमानन्द श्रीवास्तव, विजयदान देथा ओम प्रकाश वाल्मिकी जैसे ख्यात साहित्यकारों का नाम लिया जा सकता है। वास्तव में यह हिंदी साहित्य की ही नहीं विश्व साहित्य की अपूरणीय क्षति है। विजयदान देथा जिन्हे प्यार से ‘बिज्जी’ के नाम से पुकारा जाता था इन सभी से अलग और विषिष्ट श्रेणी के साहित्यकार थे। वे गांव-ढाणी और लोक के साहित्यकार थे। उन्होने लोकजीवन, लोक संगीत और लोक संस्कृति को लोक शैली के माध्यम से ही प्रस्तुत किया । वे मूलरूप से राजस्थानी के रचनाकर थे और वो भी राजस्थानी के एक क्षेत्र विशेष में बोली जाने वाली बोली मारवाड़ी के। उन्होने राजस्थानी लोक कथाओं और व...