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विनोद विश्वकर्मा का उपन्यास अंश

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राजनीति का मूल उद्देश्य सामान्यतया लोक-हित होता है. लेकिन जब राजनीतिज्ञ इसे अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने लगते हैं तब इसके मायने बदल जाते हैं. तीन-तिकड़म से ले कर तमाम भ्रष्ट उपाय किए जाते हैं सत्ता प्राप्त करने के लिए. इसी का नतीजा था राजनीतिज्ञों और आपराधिक किस्म के लोगों के बीच का सम्बन्ध. आज अपने यहाँ यह और विकृत स्वरुप में दिखायी पड़ रहा है. विनोद विश्वकर्मा ने अपने हालिया प्रकाशित उपन्यास 'ठहरा हुआ देश' में इस मुद्दे को करीने से उठाया है. आज पहली बार प्रस्तुत है इसी उपन्यास का एक अंश.        एक फैसला.... जो सुरक्षित था..... आदमी क्या सुरक्षित थे... नहीं पता......! विनोद विश्वकर्मा  दिल्ली ,   स्थान ,   भारत का सर्वोच्च न्यायालय......! “जज साहब मेरा पहला गवाह है , जो बताएगा कि बिसाखू लाल रविदास ही बाप है , विजय कुमार रविदास का.” “बिसाखूलाल   रविदास विटनेस बॉक्स में हाजिर हों.”   बिसाखू मटमैली धोती पहने , और उसी तरह मटमैला कुरता पहने चलता है , पैरों में ज्यादा दम नहीं है , इसलिए कोई एक उसे पकड़े है , और धीरे-धीरे ले जा कर उसे विटनेस बॉक्स