वीरेन्द्र यादव का आलेख 'देश-विभाजन और साहित्य'

अंग्रेजों से एक लम्बी लड़ाई के पश्चात भारत अन्ततः 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। लेकिन यह आजादी हमें विभाजन के पश्चात मिली। इतिहासकार विभाजन के बीज को कई ऐतिहासिक घटनाओं से जोड़ते हैं। लेकिन 20वीं सदी में कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच की खाई को और चौड़ा किया। आग में घी का काम किया कट्टरपंथियों ने। इसमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के कट्टरपंथी शामिल थे जिन्होंने सुलह समझौते की किसी भी स्थिति को असफल साबित कर दिया। इन कट्टरपंथियों ने अंग्रेजों के मन्तव्य को हकीकत में बदल दिया। रचनाकारों ने विभाजन की इस परिस्थिति को अपनी कविताओं , कहानियों और उपन्यासों में सशक्त ढंग से अभिव्यक्त किया है। वीरेन्द्र यादव की किताब 'प्रगतिशीलता के पक्ष में' का एक अध्याय है 'देश विभाजन और साहित्य'। उन्हीं की एक टिप्पणी के साथ हम इस महत्त्वपूर्ण आलेख को आज पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं। "15 अगस्त 1947 महज इतिहास की एक तारीख भर नहीं है। यह संदर्भ बिंदु है भारतीय समाज की उन नई सच्चाइयों का जो विभाजन के गर्भ से उपजी हैं। यह दुखद है कि विभाजन की यह प्रक्रिया ...