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दीपक सपरा का आलेख 'फुटबॉल विश्व कप के मानवीय पल : एक टेपेस्ट्री जो खेल की ही तरह सुंदर है'

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  वर्ष 2022 की महत्त्वपूर्ण घटनाओं में कतर का विश्व कप फुटबाल भी था। कतर में आयोजित फुटबाल के महाकुम्भ का नया सरताज अर्जेंटीना  बना। इस विश्व कप में कई नए पुराने सितारे दुनिया भर में चर्चा में रहे। लेकिन कुछ ऐसे भी सितारे थे जिन्होंने इस विश्व कप को सुचारू रूप से सम्पन्न कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें कोई दो राय नहीं कि फुटबाल दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल है। इस खेल के दौरान जो जुनून दिखाई पड़ता है, वह दुर्लभ है। भले ही विश्व कप में चुनिंदा देश खेल रहे हों, इससे दुनिया भर के देशों के लोगों की भावनाएं, संवेदनाएं एवम मानवीयताएं जुड़ी होती हैं। विजय के पश्चात अर्जेंटीना के स्टार खिलाड़ी लियोनेल मेस्सी ने अपने परिवार के साथ जिस तरह जश्न मनाया वह इस खेल के मानवीय पक्ष को ही दर्शाता है। इस पहलू को अपने उम्दा आलेख में दर्ज किया है दीपक सपरा ने। मूल अंग्रेजी आलेख का हिन्दी अनुवाद किया है हंस राज ने। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं दीपक सपरा का आलेख 'फुटबॉल विश्व कप के मानवीय पल : एक टेपेस्ट्री जो खेल की ही तरह सुंदर है।' 'फुटबॉल विश्व कप के मानवीय पल : एक टेपेस्ट्री जो ख

कैलाश बनवासी के उपन्यास 'रंग तेरा मेरे आगे' की मीना बुद्धिराजा द्वारा की गई समीक्षा

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  कैलाश बनवासी का हाल ही में एक नया उपन्यास आया है   'रंग तेरा मेरे आगे'। यह उपन्यास  सेतु प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। ' बनास जन' के हालिया अंक में इस उपन्यास की युवा आलोचक मीना बुद्धिराजा की समीक्षा प्रकाशित हुई है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं कैलाश बनवासी के उपन्यास पर मीना बुद्धिराजा की समीक्षा " खुरदरी ज़मीन पर प्रेम का स्वप्न : रंग तेरा मेरे आगे"। खुरदरी ज़मीन पर प्रेम का स्वप्न : रंग तेरा मेरे आगे मीना बुद्धिराजा   प्रेम किसी एक व्यक्ति के साथ सबंधों का नाम नहीं है बल्कि यह एक दृष्टिकोण है, एक स्वाभाविक रूझान है जो उस व्यक्ति और दुनिया के व्यापक सबंधों को अभिव्यक्त करता है। प्रेम एक सीमित लक्ष्य और सिर्फ एक संबंध की सोच से आगे यह एक मूल्य के रूप में अपना विस्तार करता है। किसी एक के प्रेम की उच्चता का प्रभाव उसके अहं का समपर्ण सार्वभौमिक रूप से प्रेमहीनता के निर्मम समय में एक स्थायी मूल्य बन जाता है । अपने आरंभिक अथवा कहा जाए कि अपरिपक्व रूप में भले समजैविक जुड़ाव तक ही सीमित हो, लेकिन अपनी सूक्ष्मतम और परिपक्व स्थिति तक आकर मानव अस्तित्व की च

हरीश चन्द्र पांडे की कविताएं

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  हरीश चन्द्र पांडे  एक वस्तु, समय या स्थिति के कई आयाम होते हैं। ये आयाम तब सशक्त रूप से प्रतिध्वनित होते हैं जब एक कवि इन्हें सूक्ष्म दृष्टि से देखता है। हरीश चन्द्र पाण्डे हमारे समय के ऐसे दुर्लभ कवि हैं जिनकी कविताएं पढ़ते हुए वस्तु, समय या स्थितियों के तमाम अर्थ और आयाम खुलते हैं। यह सब कविता के अन्दर ही होता है। यहां अतिरिक्त कुछ भी नहीं होता। हरीश चन्द्र पाण्डे का हाल ही में एक नया कविता संग्रह कछार कथा राजकमल प्रकाशन से आया है। आज उनका जन्मदिन भी है। प्रिय कवि को जन्मदिन की बधाई देते हुए आज हम पहली बार ब्लॉग पर प्रस्तुत कर रहे हैं इस नए संग्रह से उनकी कुछ चुनिंदा कविताएं। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएं। हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएं हरीश चन्द्र पाण्डे की कविता कछार-कथा  कछारों ने कहा  हमें भी बस्तियां बना लो ... जैसे खेतों को बनाया, जैसे जंगलों को बनाया  लोग थे  जो कब से आंखों में दो-एक कमरे लिये घूम रहे थे  कितने-कितने घर बदल चुके थे फौरी नोटिसों पर  कितनी-कितनी बार लौट आए थे जमीनों के टुकड़े देख-देख कर  पर ये दलाल ही थे जिन्होंने सबसे पहले कछारों

स्वप्निल श्रीवास्तव का यात्रा वृत्तान्त तानसेन गायक का नही एक शहर का भी नाम है

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  यात्रा केवल एक नई जगह जाना ही नहीं होता बल्कि कई नए दृश्यों, अनुभवों और जानकारियों गलियारे से गुजरना भी होता है। जब एक रचनाकार किसी यात्रा पर जाता है तो उस यात्रा को रचनात्मक बना देता है। पाठक इस वृतांत के जरिए ही उस जगह की रचनात्मक यात्रा कर लेता है। यह वृतांत महज उस जगह की रिपोर्टिंग नहीं होता, बल्कि उसका भौगोलिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, प्राकृतिक एवम पर्यावरणीय आख्यान भी होता है। कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने हाल में ही नेपाल के तानसेन नामक जगह की यात्रा की और एक यात्रा वृत्तांत लिखा है। आइए आज पहली बार ब्लॉग पर हम पढ़ते हैं  स्वप्निल श्रीवास्तव का यात्रा वृत्तान्त ' तानसेन गायक का नही एक शहर का भी नाम है।' तानसेन गायक का नहीं एक शहर का भी नाम है।       स्वप्निल श्रीवास्तव        जब मैंने पहली बार तानसेन का नाम सुना तो मुझे लगा कि इस शहर का संबंध जरूर शास्त्रीय गायक तानसेन से होगा। उनके कोई न कोई वंशज इस शहर में आए होंगे और उन्होंने इस शहर का नाम तानसेन रख दिया होगा। तानसेन 15 वीं शताब्दी में ग्वालियर में पैदा हुए थे, वहाँ उनके बारे में एक कहावत है – 'यहाँ बच्चे सुर में रोते ह