संजय कुंदन की कहानी 'फ्रेंड, फिलॉसफर गाइड'

संजय कुन्दन युवा रचनाकारों में संजय कुंदन कविता और कहानी दोनों विधाओं में सक्रियता के साथ कार्य कर रहे हैं । हाल ही में उनकी एक नयी कहानी आउटलुक में पढने को मिली । कहानी का तानाबाना कुछ इस तरह का है कि जब हम इसे एक बार पढना शुरू करते हैं तो अन्त किये बिना मन नहीं मानता । यही नहीं संजय ने इस कहानी की बुनावट कुछ इस तरह से की है कि हम अनुमान तक नहीं लगा पाते कि कहानी किस तरफ जा रही है । तो आइए पढ़ते हैं संजय कुंदन की यह कहानी । फ्रेंड , फिलॉसफर गाइड संजय कुंदन जब आप सफर में अकेले हों , तो आंखें किसी परिचित की तलाश में लगी रहती हैं। उस दिन एक सेमिनार के सिलसिले में शिमला जाने के लिए कालका शताब्दी में चढ़ा। अपनी सीट पर आकर इधर - उधर देख रहा था। आसपास की कुर्सी पर सारे यात्री बैठ चुके थे। सिर्फ सामने की कुर्सी खाली थी। तभी खिड़की के बाहर नजर गई। कई लोग हड़बड़ाए हुए चले आ रहे थे। मैंने सोचा , शायद इन्हीं में से कोई सामने वाली सीट पर बैठने आ रहा हो। इस बीच गाड़ी चल पड़ी। मैंने अपने दाहिनी ओर ताखे पर रखे...