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ईप्सिता षड़ंगी की कविताएं

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  ईप्सिता षड़ंगी स्त्री का जीवन अपने आप में ऐसा जीवन है जिसमें वह अपने अस्तित्व तक के लिए सतत संघर्षरत दिखाई पड़ती है। उससे सहज ही तमाम तरह की अपेक्षाएं की जाती हैं और उसके ऊपर तमाम तरह की पाबंदियां लगा दी जाती हैं। यही नहीं उससे खामोशी की इस कदर अपेक्षा की जाती है कि हद की इंतहा हो जाती है।  ईप्सिता षड़ंगी ने स्त्री जीवन के इस संघर्ष को कविता में स्वर प्रदान किया है। वे मूलतः ओड़िया भाषा की कवयित्री हैं। लेकिन भाषा कोई भी हो स्त्रियों की पीड़ा तो सब जगह कमोबेश एक जैसी ही दिखाई पड़ती है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  ईप्सिता षड़ंगी की कुछ कविताएं। ईप्सिता षड़ंगी की कविताएं  स्त्री जन्म यहां बोलना कम सहने की दाय ज्यादा। जितना ज्यादा हो अभिमान उतना ज्यादा है यूपकाठ में जान। मिट्टी से भी ज्यादा है सहनशीलता की अपेक्षा.... खुशी से कोसों दूर है जैसा यह जिन्दगी का लक्ष्य। जितनी सतर्क हो भी क्यों  ना शब्दों के प्रयोग में स्वर निकल पड़ता है बाहर जितना भी समेट के पकड़ो क्यों  ना सिरा को कष्ट के आंसू निकल ही आते हैं आंखों से चिबुक पर। सांस की आहट शब्दों के अंतर्दाह...