यादवेन्द्र का आलेख 'आज़ादी का स्वाद एकदम अनूठा है''।

मानव समाज में श्रम विभाजन की प्रारम्भिक अवस्था में एक तरफ जहां पुरुषों के जिम्मे शिकार करना, लड़ाई करना और बाहरी व्यवस्थाएं करना आया, वहीं दूसरी तरफ महिलाओं के हिस्से में बच्चों की देखभाल एवम पालन पोषण करना, खाना बनाना एवम गृहस्थी चलाने की जिम्मेदारी आई। तब से आज तक यही व्यवस्था चली आ रही है जिसमें खाना बनाने और खिलाने का कार्य महिलाओं के ऊपर होता है। यह कार्य आजीवन चलता रहता है। लेकिन काम की एकरूपता से महिलाएं ऊबती भी हैं, पुरुष यह सोच भी नहीं पाते। जीवन की एकरसता को तोड़ने के लिए वे अपना रूटीन तोड़ कर उस होटल में जाती हैं जहां स्वादिष्ट खाना मिलता है। ' उन्हें लगता है कम से कम एक दिन तो ऐसा मिले जब उन्हें परिवार के लिए खाना न बनाना पड़े - खाना न बनाना उनकी आज़ादी का एक पहलू है लेकिन उतना ही महत्वपूर्ण या शायद उससे ज्यादा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि खाते समय उन्हें परिवार वालों की नज़रों की निगरानी में न रहना पड़े। ' एक नई विषयवस्तु को अपने कहानी का विषय बनाया है तमिल और अंग्रेजी में लिखने वाली लक्ष्मी कन्नन ने। विचारक यादवेन्द्र जी पहली बार पर सिलसिलेवार ढं...