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जयनंदन की कहानी 'मलेच्छ'

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मनुष्य ने अपने विकास क्रम की प्रक्रिया में धर्म की खोज की और इसी क्रम में उसने ईश्वर की परिकल्पना की. कालांतर में जब मनुष्य तर्क वितर्क की तरफ मुड़ा और विज्ञान की तरफ बढ़ा तो ये सारी परिकल्पनाएँ आधारहीन लगने लगीं. विज्ञान धर्म के सामने चुनौती प्रस्तुत करने लगा. हालांकि धर्म ने विज्ञान की राह में काम अड़ंगे नहीं लगाये. आज भी यह द्वंद्व जारी है. इसी को केंद्र में रख कर जयनंदन ने एक उम्दा कहानी लिखी है जिसे आज हम पहली बार के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. तो आइये आज पढ़ते हैं जयनंदन की कहानी मलेच्छ.   मलेच्छ जयनंदन शोभित शरण सार्वजनिक सभाओं में ईश्वर , आत्मा और तमाम तरह के धार्मिक क्रिया-कलापों को कोसता था , खारिज करता था और इस तरह के कर्मकांडों की खिल्ली उड़ाता था। लेकिन जब उसके पिता मरे तो उसे सारे विधि-विधान के चक्कर में फंस जाना पड़ा।  हृदयाघात से रोहित शरण अचानक गुजर गये। खबर मिलते ही शोभित अपनी पत्नी के साथ टाटा से बस ले कर सुबह ही सुबह नवादा आ गया और फिर वहां से ट्रेकर द्वारा 12 किलोमीटर दूर अपना गांव भुआलचक पहुंच गया।  अमेरिका में रह रही अपनी बहन

मनोज कुमार पाण्डेय की कहानी 'न्याय विभाग ने मरे हुए व्यक्ति के साथ भूल सुधार किया'

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  मनोज कुमार पाण्डेय   साहित्य कोरी कल्पना मात्र नहीं होता बल्कि वह यथार्थपरक विडम्बनाओं को कल्पनाओं के सहारे सशक्त तरीके से आगे लाने का काम करता है. होता भी है कि हम जिसे कहानी समझते होते हैं वह एक समय में हकीकत में तब्दील हो जाती है. अगर विडंबनाएं समाप्त हो जाएँ तो वह साहित्य भी बेमानी हो जाएगा जिनको ले कर उसे रचा गया था. युवा पीढ़ी में भी कई ऐसे रचनाकार हैं जो अपनी रचनाओं के जरिए अपने समय की विडम्बनाओं को उभारने में सफल दिखायी पड़ते हैं. मनोज कुमार पाण्डेय ऐसे ही कहानीकार हैं. हाल ही में उनकी एक कहानी 'न्याय विभाग ने मरे हुए व्यक्ति के साथ भूल सुधार किया'  प्रयागपथ पत्रिका के हालिया अंक में छपी है. वास्तव में यह कहानी ‘ स्वर्णदेश की लोक कथाएँ ’ नाम से लिखी जा रही कहानियों की शृंखला का हिस्सा है। इस श्रृंखला की कुछ कहानियाँ पहल , कथादेश , हंस , बनास जन , स्वाधीनता , सबद और जानकीपुल आदि पर प्रकाशित हो चुकी हैं। आज पहली बार पर प्रस्तुत है मनोज कुमार पाण्डेय की कहानी 'न्याय विभाग ने मरे हुए व्यक्ति के साथ भूल सुधार किया' .       न्याय विभाग ने मरे