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जनवरी, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

राजकिशोर राजन

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राजकिशोर राजन पिता का नाम : स्व. राधाकृष्ण सिंह जन्म तिथि : 25.08.1967 शिक्षा : एम.ए (हिंदी) एवं पत्रकारिता में डिप्लोमा प्रकाशित कृतियाँ : 'बस क्षण भर के लिए', 'नूरानी बाग' एवं ‘ढील हेरती लड़की’ काव्य पुस्तकें प्रकाशित । आरसी प्रसाद सिंह साहित्य सम्मान । बिहार राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा सम्मान एवं अन्य संगठनों द्वारा पुरस्कार । कुछ कविताओं का अंग्रेजी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद आजीविका टयूशन से लेकर अखबार तक अन्य : विगत डेढ़ दशक से देश के प्रतिष्ठ पत्र-पत्रिकाओं - माध्यम, अक्षर पर्व, दस्तावेज, पाखी, वसुधा, जनसत्ता, हिन्दुस्तान आदि में कविताएं प्रकाशित । आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से कविताओं का प्रकाशन । रंगमंच के क्षेत्र में भी सक्रियता, कई नाटकों का लेखन व निर्देशन । कुछेक पत्रिकाओं का संपादन । संप्रति : राजभाषा विभाग, पूर्व मध्य रेल, हाजीपुर में कार्यरत । स्थायी निवास का पता : ग्राम - चाँदपरना, पोस्ट - सिधवलिया, जिला - गोपालगंज, बिहार - 841423 वर्तमान पता-   59 एल आई सी कॉलोनी, कंकड़बाग, पटना - 800020. मोबाईल - 099

Dhruva Harsh

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Dhruva Harsh Writers for Change: Neelabh "To be Marxist in Literature is not bad habit" Neelabh’s Marxism is not like author-function. His marxism is a very wide field comprising a theory of economics, history, society and revolution. It might be abuse to have with this ideology only for those, who keeps mentality ‘To be self imposing democrat’. But it is often said that Marxist assign a structure to social reality, and they are interested system in examining the ways on which on socioeconomic system determines own life and experiences. This is reflected in his poems as discourse. His poetry unlike, “spontaneous overflow”, but asserts the intellectual phenomenology with his ‘deep felt’ expression about the condition of living people. How this is being bad to worse, shameful! "इस दौर में हत्यारे और भी नफीस होते जाते है मारे जाने वाले और भी दयनीय" In the very first line of this poem, If you fee down hearted. It seems to be melancholic in tone.

रामजी तिवारी की समीक्षा "अनहद" समकालीन सृजन का समवेत नाद

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"अनहद" समकालीन सृजन का समवेत नाद रामजी तिवारी साहित्य को गतिशील बनाये रखने और उसे समाज के बड़े तबके तक पहुँचाने में लघु पत्रिकाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। हिंदी सहित भारत की अन्य भाषाओं में इनका स्वर्णिम इतिहास उपरोक्त तथ्य की गवाही देता है। इन पत्रिकाओं में एक तरफ जहाँ साहित्य कि मुख्य विधाएं फली-फूली और विकसित हुयी है, वही उसकी गौण विधाओं को भी पर्याप्त आदर और सम्मान मिला है। इनकी बहसों ने तो सदा ही रचनात्मकता के नए मानदंड और प्रतिमान स्थापित किये हैं। हिंदी में इन लघु पत्रिकाओं का लगभग सौ सालों का इतिहास हमें गर्व करने के बहुत सारे अवसर उपलब्ध करता है। इन पत्रिकाओं का वर्तमान परिदृश्य दो विपरीत ध्रुवों पर खड़ा नजर आता है। एक तरफ तो इस पूरे आंदोलन पर प्रश्न-चिन्ह खड़ा किया जा रहा है, वहीँ दूसरी ओर इन पत्रिकाओं की भारी उपस्थिति और उनमे गुणवत्ता की दृष्टि से रचे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य को भी स्वीकार्यता मिल रही है। पत्रिकाएं प्रतिष्ठानों तक ही सीमित नहीं रही, वरन व्यक्तिगत एवम सामूहिक प्रयासों तक भी फैलती चली गयी हैं। आज हिंदी में सौ से अधिक लघु पत्रिक

शैलेय

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शैलेय   जन्म - 6.6.1966 - ग्राम जैंती ;रानीखेत, जनपद-अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड। शिक्षा - पी एच.डी. ;(हिन्दी)। - लम्बे समय से मजदूर आंदोलन-कुष्ठ रोगियों के मध्य कार्य-संस्कृति कर्म में सक्रिय। उत्तराखण्ड      आंदोलन के दौरान जेल यात्रा। किशोरावस्था से ही अनेक फुटकर नौकरियां एवं पत्रकारिता करते हुए संप्रति-एसोसिएट प्रोफेसर। प्रकाशन - - या (कविता संग्रह) - तो (कविता संग्रह) - यहीं कहीं से (कहानी संग्रह) - हाशिये का कोरस (उपन्यास) ;शीघ्र प्रकाश्य- (आधार प्रकाशन) - नई कविताः एक मूल्यांकन (आलोचना पुस्तक) - कुछेक पर्शियन कविताओं का हिन्दी अनुवाद संपादन - ‘द्वार’ तथा ‘इन दिनों’-साहित्यिक सांस्कृतिक पत्रिकाएं। सम्मान - परम्परा सम्मान, शब्द साधक सम्मान, आचार्य निरंजननाथ सम्मान, परिवेश सम्मान अंबिका प्रसाद दिव्य सम्मान, मलखान सिंह सिसौदिया पुरस्कार पता - D2-1/14 मैट्रोपौलिस सिटी, रुद्रपुर; ऊधमसिंहनगर उत्तराखण्ड -263153. मो. नं-  09760971225             09410333840 अंग्रेज अंग्रेज स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को जेलों में ठूंस देते थे गोलियों से भून देते