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परांस-5 : सुधीर महाजन की कविताएं

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  कमल जीत चौधरी  ऊंचाई अपने आप में एक तिलिस्म रचती है। यह विडम्बना ही है कि कोई भी ऊंचाई अपना आधार पृथिवी को ही बनाती है। इसी पृथिवी पर रहते हुए हम एक जगह बनाते हैं। यह वह सामान्य जगह होती है जिसे आम तौर पर निचली जगह कहा जाता है। ऊपर से नीचे का ठीक ठीक देख पाना कठिन होता है लेकिन नीचे से ऊपर का सब कुछ दिख जाता है। सुधीर महाजन अपनी एक कविता में लिखते हैं : 'हवाई जहाज़ की खिड़की से/ मेरा घर नज़र आता हो या न आता हो/ मेरे घर की खिड़की से/ हवाई जहाज़ बहुत छोटा-सा नज़र आता है...।' कहने का कवि का अपना तरीका है जिसमें धरती से जुड़े कवि को अपने घर की खिड़की से आसमान में उड़ता हवाई जहाज़ बहुत छोटा-सा नज़र आता है...।' ऐसी दृष्टि एक कवि की ही हो सकती है। उसके लिए ऊंचाइयों का वह मोल नहीं जो जमीन का होता है।  पिछले अप्रैल से कवि कमल जीत चौधरी जम्मू कश्मीर के कवियों को सामने लाने का दायित्व संभाल रहे हैं। इस शृंखला को उन्होंने जम्मू अंचल का एक प्यारा सा नाम दिया है 'परांस'। परांस को हम हर महीने के तीसरे रविवार को प्रस्तुत कर रहे हैं। इस कॉलम के अन्तर्गत अभी तक हम अमिता मेहता, कुमार कृष्ण ...