संदेश

जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भारत यायावर का संस्मरण 'यारों का यार अनिल जनविजय'।

चित्र
साहित्य में मित्रता की तमाम मिसालें हैं। उसमें से एक मिसाल अनिल जनविजय और भारत यायावर की दोस्ती की है। भारत यायावर ने वर्ष 2012 में अपने मित्र अनिल जनविजय पर  एक संस्मरण लिखा था। यह संस्मरण इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें तमाम वे बातें भी समाहित हैं, जिनसे मिल कर ही हिन्दी साहित्य का वितान बनता है। कवि, अनुवादक और उम्दा इंसान अनिल जनविजय के जन्मदिन पर उन्हें बधाई देते हुए आज पहली बार पर प्रस्तुत है भारत यायावर का संस्मरण 'यारों का यार अनिल जनविजय'। यारों का यार अनिल जनविजय भारत यायावर अनिल! दोस्त, मित्र, मीत, मितवा! मेरी आत्मा का सहचर! जीवन के पथ पर चलते-चलते अचानक मिला एक भिक्षुक को अमूल्य हीरा। निश्छल - बेलौस - लापरवाह - धुनी - मस्तमौला - रससिद्ध अनिल जनविजय! जब उससे पहली बार मिला, दिल की धड़कनें बढ़ गईं, मेरे रोम-रोम में वह समा गया। क्यों, कैसे? नहीं कह सकता। यह भी नहीं कह सकता कि हमारे बीच में इतना प्रगाढ़ प्रेम कहाँ से आ कर अचानक समा गया? अनिल  को बाबा नागार्जुन मुनि जिनविजय कहा करते थे। उन्होंने पहचान लिया था कि उसके भीतर कोई साधु-संन्

बलभद्र का संस्मरण रमाकांत द्विवेदी 'रमता' : स्वराज से सुराज तक के लड़वइया-गवइया

चित्र
रमता जी संस्मरण हमें केवल किसी व्यक्ति के बारे में ही नहीं बताते बल्कि इनसे हम एक समूचे युग से परिचित होते हैं। साहित्य से जुड़ना अपनी संस्कृति से भी जुड़ना होता है। रमाकान्त द्विवेदी रमता भोजपुरी के ऐसे ही कवि थे जो लोक से गहरे तौर पर जुड़े हुए थे। इसके गवाह उनके वे गीत हैं जो लोगों की जुबान पर आज भी चढ़े हुए हैं। रमता जी पर बलभद्र ने एक आत्मीय संस्मरण लिखा है "रमाकान्त द्विवेदी 'रमता' : स्वराज से सुराज तक के लड़वइया-गवइया"। रमाकांत द्विवेदी 'रमता' : स्वराज से सुराज तक के लड़वइया-गवइया                बलभद्र       रमता जी के बारे में कुछ भी जानने से पहले उनके गीतों को जाना। वह 1988 का साल होगा जब पहली बार अपने गांव में भगेला यादव के चौपाल पर रमता जी का एक गीत सुना था। वह गीत था-  "क्रांति के रागिनी हम त गइबे करब  केहू का ना सोेहाला त हम का करीं।"  इस चौपाल पर गांव के किसानों-मजदूरों की एक मीटिंग हो रही थी। कॉमरेड चंद्रमा प्रसाद आये थे। मेरे गाँव में अपने टाइप की यह पहली मीटिंग थी। लोगों से बातचीत के बाद चंद्रमा जी ने यह गीत सुना

रामजी राय का आलेख

चित्र
  मुक्तिबोध ऐसे कवि हैं जिनके बिना हिन्दी कविता की बात पूरी ही नहीं हो सकती। उनकी कविता को कठिन, दुर्गम कहा जा सकता है लेकिन एक बार उसे पढ़ने के बाद उसके सहज आकर्षण से बचा नहीं जा सकता। हम सब यह जानते हैं कि वे मूलतः मराठीभाषी थे, बावजूद इसके उन्होंने हिन्दी में कविता लिखना शुरू किया। और महज लिखा ही नहीं, यह साबित कर दिया कि हिन्दी कविता उनके बिना अधूरी अधूरी सी दिखेगी। अपनी कुशलता से उन्होंने कठिन से कठिन गद्य को भी कविता की भाषा बना दिया। हालांकि एक लय उनकी कविताओं में लगातार बरकरार रहता है। उनकी कविता को पढ़ कर किंचित भी ऐसा नहीं लगता कि ये कविताएँ आज से लगभग साठ साल पहले लिखी गयी थीं। आज भी जैसे हमारे इस त्रासद समय की पड़ताल करती ये कविताएँ मन को जैसे उद्वेलित कर देती हैं। मुक्तिबोध को किस तरह के उद्वेलन से गुजरना पड़ा होगा, हम इसकी कल्पना ही कर सकते हैं। रामजी राय मुक्तिबोध की कविताओं के गहन अध्येता हैं। मुक्तिबोध की कविताओं की तह में जा कर वे इन दिनों उन पर लिखने का काम कर रहे हैं। पहला आलेख एलिअनेशन पर है। यह लेख मूलतः इलाहाबाद की चर्चित पत्रिका 'कथा-22' में प्रकाशित