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पंकज मित्र की कहानी 'रसपिरिया पर बज्जर गिरे'।

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पंकज मित्र             रचनाधर्मिता अपने आप में एक कठिन कर्म होता है। यह रचनाधर्मिता वस्तुतः कल्पनाधर्मिता से उपजती है। इस कल्पना ने ही इंसान को इंसान बनाने में बड़ी भूमिका अदा की है। एक कहानीकार जब अपनी कोई कहानी लिखता है तो उसे यह छूट होती है कि उसे किस तरह बरते। लेकिन जब किसी महान रचनाकार की किसी रचना की निजता बचाए रखते हुए उसी शीर्षक की तर्ज़ पर कहानी लिखनी हो तो सामने तमाम चुनौतियाँ होती हैं। और जब सामने फणीश्वरनाथ रेणु की कालजयी कहानी रसप्रिया हो तो ? सोचना भी मुश्किल होता है कि आखिर इस कहानी में कुछ कर पाने की आखिर कोई संभावना भी है क्या ? इस क्या का जवाब पंकज मित्र के पास है। पंकज हमारे समय के अत्यंत संभावनाशील कहानीकारों में से हैं। हाल ही में उन्होंने ' रसपिरिया पर बज्जर गिरे ' कहानी लिखी है। अपने एक आलेख में आलोचक मित्र विनोद तिवारी ने ठीक ही लिखा है : "पंकज मित्र की ‘ रसप्रिया पर बज्जर गिरे ’ को आप थोड़ा इत्मीनान से , ठहर कर , दोनों कहानियों को आमने सामने रख कर पढ़ेंगे तो पाएंगे कि यह कहानी रमपतिया के पक्ष को , उस क...