जगदीश्वर चतुर्वेदी का आलेख 'मुक्तिबोध का प्रेम'

मुक्तिबोध प्रेम जीवन का मूल भाव है। रूखे दिखने वाले व्यक्ति के अन्दर भी कहीं न कहीं प्रेम छुपा होता है। कुछ आलोचक मुक्तिबोध पर कठिन कवि होने का आवरण चस्पा करते हैं लेकिन जब हम उनकी रचनाओं से हो कर गुजरते हैं तो पाते हैं कि मुक्तिबोध कितने सहज थे और उन का मन प्यार से भरा हुआ था। वे अपने प्रेम को छुपाने का यत्न भी नहीं करते और बड़े सहज तरीके से इसे अभिव्यक्त करते हैं। गजानन्द माधव मुक्तिबोध की कल पुण्यतिथि थी। कल हमने पीयूष कुमार का आलेख प्रस्तुत किया था। इस क्रम में आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं जगदीश्वर चतुर्वेदी का आलेख 'मुक्तिबोध का प्रेम'। 'मुक्तिबोध का प्रेम' जगदीश्वर चतुर्वेदी हिन्दी का लेखक अभी भी निजी प्रेम के बारे में बताने से भागता है। लेकिन मुक्तिबोध पहले हिन्दी लेखक हैं जो अपने प्रेम का अपने ही शब्दों में बयान करते हैं। मुक्तिबोध का अपनी प्रेमिका, जो बाद में पत्नी बनी, के साथ बड़ा ही गाढ़ा प्यार था, इस प्यार की हिन्दी में मिसाल नहीं मिलती। यह प्रेम उनका तब हुआ जब वे इंदौ...