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जगदीश्वर चतुर्वेदी का आलेख 'मुक्तिबोध का प्रेम'

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  मुक्तिबोध प्रेम जीवन का मूल भाव है। रूखे दिखने वाले व्यक्ति के अन्दर भी कहीं न कहीं प्रेम छुपा होता है। कुछ आलोचक  मुक्तिबोध पर कठिन कवि होने का आवरण चस्पा करते हैं लेकिन जब हम उनकी रचनाओं से हो कर गुजरते हैं तो पाते हैं कि मुक्तिबोध कितने सहज थे और उन का मन प्यार से भरा हुआ था। वे अपने प्रेम को छुपाने का यत्न भी नहीं करते और बड़े सहज तरीके से इसे अभिव्यक्त करते हैं।  गजानन्द माधव मुक्तिबोध की कल पुण्यतिथि थी। कल हमने पीयूष कुमार का आलेख प्रस्तुत किया था।  इस क्रम में आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं  जगदीश्वर चतुर्वेदी का आलेख 'मुक्तिबोध का प्रेम'।        'मुक्तिबोध का प्रेम'    जगदीश्वर चतुर्वेदी  हि‍न्‍दी का लेखक अभी भी नि‍जी प्रेम के बारे में बताने से भागता है। लेकि‍न मुक्‍ति‍बोध पहले हि‍न्‍दी लेखक हैं जो अपने प्रेम का अपने ही शब्‍दों में बयान करते हैं। मुक्‍ति‍बोध का अपनी प्रेमि‍का, जो बाद में पत्‍नी बनी, के साथ बड़ा ही गाढ़ा प्‍यार था, इस प्‍यार की हि‍न्‍दी में मि‍साल नहीं मि‍लती। यह प्रेम उनका तब हुआ जब वे इंदौ...

पीयूष कुमार का आलेख 'मुक्तिबोध के पत्रों में जीवन और साहित्य'

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  मुक्तिबोध एक जमाना हुआ करता था जब लोग एक दूसरे को पत्र लिखा करते थे। इन पत्रों में अपनत्व की खुशबू होती थी। अक्षरों का सान्निध्य रोमांचित करता था। मोबाइल कल्चर ने पत्र लेखन की इस विधा को लगभग समाप्त कर दिया। रचनाकार भी तब इस पत्र लेखन के जरिए ही अपनी अभिव्यक्ति कर पाते थे। हिन्दी के कालजई कवि रचनाकार मुक्तिबोध के पत्रों का संसार व्यापक है। आई पत्रों से कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं। उनके पत्रों में साहित्य के अलावा कला, संस्कृति, समाज, शिक्षा, राजनीति, आंदोलन और वैश्विक मुद्दों पर विमर्श के तमाम विषय विस्तार से मिलते हैं। आज मुक्तिबोध के जन्मदिन पर  उनकी स्मृति को नमन करते हुए आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं पीयूष कुमार का आलेख 'मुक्तिबोध के पत्रों में जीवन और साहित्य'। 'मुक्तिबोध के पत्रों में जीवन और साहित्य' पीयूष कुमार गजानन माधव मुक्तिबोध को समझने में उनका पत्र साहित्य उतना ही उपयोगी है जितना उनका रचनात्मक साहित्य। मुक्तिबोध के पत्रों का संसार बड़ा था। उनके पत्रों में साहित्य के अलावा कला, संस्कृति, समाज, शिक्षा, राजनीति, आंदोलन और वैश्विक मुद्दों पर विमर्श क...

विनोद तिवारी का आलेख

 मुक्तिबोध के जन्मदिन पर उन्हें याद करते हुए :  आज से दो साल पहले मुक्तिबोध की स्मृति में रायपुर में दिये गए व्याख्यान का यह लिखित रूप है।  विनोद तिवारी  मुक्तिबोध कवि होने के साथ-साथ एक सजग, सचेत विचार-सम्पन्न आलोचक हैं । आलोचना उनके लिए साहित्य-समीक्षा से आगे बढ़कर सभ्यता-समीक्षा का माध्यम और उपलब्धि दोनों है । मुक्तिबोध की साहित्यिक पहचान भले ही एक कवि की हो पर मुक्तिबोध की रचनात्मक प्रकृति के केंद्र में आलोचना है । उनकी ‘काव्यभाषा’ में काव्यात्मक वातावरण की जगह जो एक उघड़ा हुआ नीरंध्र, तिक्त आलोचनात्मक गद्य-संवेदन मिलता है, वह उनकी इस प्रकृति का सबल प्रमाण है । अगर यह कहा जाय कि, मुक्तिबोध के समूचे साहित्य-विचार-चिंतन की प्रक्रिया में आलोचना केंद्रीय स्थिति में है तो गलत नहीं होगा। वास्तव में, मुक्तिबोध अपनी पढ़त में सरल नहीं हैं, वे न तो हिंदी के राष्ट्र–कवियों की तरह इकहरे अर्थागम में सहज उपलब्ध कर लिए जाने वाले कवि हैं और न ही चलताऊ नुस्खों के सहारे सनसनी पैदा करने वाली रिक्त-संवेदना के लोकप्रिय (पाप्युलर के अर्थ में) लेखक । वे अपने पढ़े जाने के लिए एक गहन, गंभीर ...

रामजी राय का आलेख 'अवचेतन, व्यक्तित्व विभाजन और रचनात्मकता'

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    मुक्तिबोध हिन्दी के ऐसे दुर्लभ कवि हैं जिनकी कविता मनोविज्ञान, तर्क और विज्ञान के मजबूत धरातल पर खड़ी है। उनकी कविताओं में कठिन शब्द बार बार आते हैं लेकिन वे कहीं भी अवरोध नहीं बनते बल्कि काव्य प्रवाह के रूप में आते हैं। हिंदी काव्य परंपरा में मुक्तिबोध ने कई नए शब्दों का समावेश किया। वास्तव में  आजादी के बाद की विडंबनापूर्ण परिस्थितियों का मुक्तिबोध ने अपनी कविता में खुले तौर पर समावेश किया और इस प्रक्रिया में कठिन शब्द आने लाजिमी थे। रामजी राय मुक्तिबोध की रचनाधर्मिता के गहन अध्येता है।  पहली बार पर हम पूर्व में ही राम जी राय का एक गंभीर आलेख पढ़ चुके हैं। आज उसी कड़ी का दूसरा खंड प्रस्तुत किया जा रहा है। इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली नियतकालिक पत्रिका 'कथा' के अंक 23 में उनका यह आलेख हाल ही में प्रकाशित हुआ है। उस आलेख का किंचित परिवर्धित एवं संशोधित रूप पहली बार के पाठकों के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है। तो आइए आज पहली बार पढ़ते हैं रामजी राय का आलेख  'अवचेतन, व्यक्ति विभाजन और रचनात्मकता'। अवचेतन, व्यक्तित्व विभाजन और रचनात्मकता   रामजी राय  ...