मार्कण्डेय
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किसी भी रचनाकार के लिए अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में बात करना बहुत आसान नहीं होता. समय का एक-एक रेशा चुपके से किसी भी लेखक के लेखकीय व्यक्तित्व की निर्मित्ति में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता चला जाता है. और इसी धरातल पर वह वितान निर्मित होता है जिसे हम रचनाकार के नाम से जानते हैं. इस प्रकार किसी भी लेखक के ‘लेखन’ में उसके ‘देखन’ की अहम भूमिका होती है. नयी कहानी आंदोलन के प्रणेताओं में से एक मार्कन्डेय जी खुद इस बात को स्वीकार करते हैं कि उनके लेखन में कल्पना की जगह अनुभव यानी ‘देखन’ का हमेशा प्रमुख स्थान रहा. यही इस नयी कहानी आंदोलन की खासियत भी थी. एक अरसा पहले इलाहाबाद के महत्त्वपूर्ण दैनिक पत्र ‘अमृत प्रभात’ में हमारे प्रिय कहानीकार मार्कन्डेय जी ने सारगर्भित लेख ‘मेरी कथा यात्रा’ के माध्यम से अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में विस्तृत प्रकाश डाला था. किसी भी नए-पुराने रचनाकार के लिए यह आलेख एक धरोहर की तरह है. २ मई को उनके जन्मदिन के अवसर पर हम तीन कड़ियों में उन पर सामग्री प्रस्तुत करेंगे. इसी क्रम में पहली कड़ी के अंतर्गत प्रस्तुत है खुद मार्कन्डेय जी की ज़ुबानी उनकी रचना प्रक्रि…