अवधेश प्रीत की कहानी 'कौतुक-कथा'

अवधेश प्रीत मानव सभ्यता ने वैज्ञानिक विकास के चलते आज ऊंचाइयों के जो प्रतिमान स्थापित किए हैं उनका कोई सानी नहीं है। लेकिन इसका एक दूसरा आयाम भी है जो भयावह है। विकास के क्रम में हमने जो रास्ते अख्तियार किए, वे हमें उस तरफ ले कर जा रहे हैं जहां तबाही के अलावा कुछ भी नहीं दिखता। इस पृथ्वी को हरियाली का जीवनदाई आवरण प्रदान करने वाले पेड़ पौधों को हमने जिस अंधाधुंध अंदाज में समाप्त किया है अब वह जलवायु परिवर्तन के रूप में दिखाई पड़ने लगा है। हमने ऐसे हथियार बना लिए हैं जिससे इस पृथ्वी को कई बार तबाह किया जा सकता है। विकास के क्रम में हम उन आदर्शों और नैतिकताओं को लगातार दरकिनार करते जा रहे हैं जो हमें सचमुच इंसान की शक्ल देते रहे हैं। रचनाएँ बहुत कुछ हमारे अपने बीते हुए को आधार बना कर लिखी जाती हैं। लेकिन कुछ रचनाएं ऐसी भी होती हैं जो हमें भविष्य की भयावहता की तरफ आईना दिखाती हैं। कुछ इसी अंदाज की कहानी है अवधेश प्रीत की 'कौतुक कथा।' अपनी कहानी में अवधेश लिखते हैं 'बच्चों, मेरे प्यारे बच्चो! मैं जो कह रहा हूं उस पर विश्वास करो, क्योंकि विश्वास दुनिया को बेहतर बनाने की पहली ...