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रविभूषण का समीक्षात्मक आलेख 'ढलती सांझ का सूरज' उम्मीद, साहस, श्रम, लगन, मकसद, स्वप्न और बड़े सवालों का उपन्यास'

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मधु कांकरिया भारत में आज भी एक बड़ी आबादी किसानों की है। विश्लेषक आंकड़ों का हवाला दे कर यह बताते हैं कि देश की आबादी का करीब 50 फीसदी मानव संसाधन कृषि क्षेत्र में है। वर्ष  2003- 2004 में जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी 20.7 फीसदी थी, जिसके बाद से अब जा कर यह लगभग 20 फीसदी पहुंची है। इसके बावजूद पूरे देश में किसानों की स्थिति को अच्छा नहीं कहा जा सकता। इसीलिए भारत के रचनाकारों ने किसानों को अपनी रचनाओं में प्रमुखता प्रदान की। प्रेमचन्द के उपन्यास और कहानियां भारतीय ग्रामीण और किसान जीवन की जीवन्त वृत्तान्त उपस्थित करते हैं। हमारे समय की प्रख्यात कथाकार मधु कांकरिया का उपन्यास 'ढलती सांझ का सूरज' के केन्द्र में भारत का किसान ही है। खासकर उस मराठवाड़ा क्षेत्र का किसान, जो अपनी त्रासद आत्महत्याओं के कारण सुर्खियों में रहा। मधु जी अपने उपन्यासों के लिए जमीन पर काम करती हैं। इसीलिए आलोचक रविभूषण ने उनके बारे में कहा है कि वे हिंदी की अकेली सक्रियतावादी (एक्टिविस्ट) कथाकार हैं। रवि भूषण जी ने 'ढलती सांझ का सूरज' पर एक समीक्षा लिखी है। आज हम पहली बार पर पढ़ते हैं रवि भूषण का सम...