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शाहनाज़ इमरानी की कविताएँ

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शाहनाज़ इमरानी समय हमेशा रैखिक गति से नहीं चलता। कभी वह अग्रगामी प्रतीत होता है तो कभी वह पश्चगामी। निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि आज का समय पश्चगामी समय है। कट्टरताएँ दुनिया भर में हर जगह फिर से सिर उठा रही हैं। दक्षिणपंथी पार्टियाँ सत्ता में आ रही हैं। ऐसा लगता है जैसे मध्यकाल फिर से जीवंत हो उठा हो। मानवता की जगह अब धर्म , जाति और वर्ग जैसी संकीर्ण परिधियों ने ले लिया है। कवि का दायित्व निभाते हुए शाहनाज़ इमरानी इस कट्टरता और संकीर्णता को अपनी कविता में साफगोई से इंगित करती हैं। अपनी एक कविता में शाहनाज़ लिखती हैं ' अनगिनत आवाजें हैं , मगर सुनाई बहुत कम देतीं/ और समझ उससे भी कम आता। ' आज सचमुच ऐसा ही परिदृश्य है। आज पहली बार पर प्रस्तुत है शाहनाज इमरानी की कविताएँ।   शाहनाज़ इमरानी की कविताएँ मेरा ख़ौफ़   एक ही सिम्त में चलते दिन रात उदासी एक गहरी नदी जिसमे चेहरा भी उचाट नज़र आता सुबह से शाम और शाम से रात तक   नपे   तुले   क़दमों की हरकत     बदलती दुनिया की हर चीज़ के बदलते मायने शाम ढलते हुए काली रात में बदली ...