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सुल्तान अहमद की ग़ज़लें

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ग़ज़ल विधा ऐसी विधा है जो आज भी लोगों में बहुत लोकप्रिय हैं. ग़ज़लों का आरंभ अरबी साहित्य की काव्य विधा के रूप में हुआ। अरबी से होते हुए यह फ़ारसी, उर्दू के बरास्ते हिन्दी में आयी। आरम्भ में इस विधा का केन्द्रीय तत्त्व प्रेम था। आगे चल कर राजनीति और जनजीवन से जुड़े मुद्दे ग़ज़लों का विषय बने। दुष्यन्त कुमार ने हिन्दी ग़ज़ल को वह लोकप्रियता प्रदान की जो उसे अन्य विधाओं से अलहदा बनाती है. आज भी इस ग़ज़ल विधा में बेहतर लेखन हो रहा है। ऐसा ही एक नाम है सुल्तान अहमद का। सुल्तान अहमद का हाल ही में एक नया ग़ज़ल संग्रह आया है 'नदी हाशिये पर' । आज पहली बार पर प्रस्तुत है सुलतान अहमद के इस ग़ज़ल संग्रह से कुछ ग़ज़लें।         सुल्तान अहमद की ग़ज़लें 1 मेरा सर झुका तो हटे   सभी कि वो सर न हो , कोई सूल   हो, वो ख़ुदा   कहीं न     मिला   जिसे   मेरी बंदगी   ये क़बूल   हो। मैं खड़ा हुआ तो बिठा दिया , मेरा हाथ उठा तो गिरा   दिया , मेरे लब खुले   तो वो हँस पड़े ,   मेरी बात   जैसे   फ़िज़ूल हो। ये जो शह्र है , वो शरीफ़ है ,   कोई इसमें आके लुटा ही   क्यों , दिया मुंसिफ़ों ने  

इन्द्राक्षी दास की कविताएँ

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  इन्द्राक्षी दास  इन्द्राक्षी दसवीं की छात्रा हैं. इनके शिक्षक इन्द्रमणि उपाध्याय ने इनकी कविताएँ 'पहली बार' ब्लॉग के लिए भेजीं हैं. इन्द्राक्षी की कविताएँ संभावनाओं की कविता है. आज जब नयी पीढ़ी अपना अधिकाँश समय मोबाईल, फेसबुक और व्हाट्सएप में गुजार रही है इन्द्राक्षी का यह प्रयास सराहनीय है. इसी क्रम में इन्द्राक्षी का यह सवाल भी काबिले गौर है - "क्या हर बार जरूरी है कविता का सुंदर दिखना/ जरूरत से ज्यादा अलंकृत होना/ क्या यह पंक्तियाँ ही सुंदर होती हैं/ या इनके पीछे की सोच भी उतनी ही सुंदर होती है/ सोचती हूँ।" आज पहली बार पर 'नवांकुर' के अंतर्गत हम प्रस्तुत कर रहे हैं इन्द्राक्षी दास की कविताएँ.      कवि परिचय  नाम- इन्द्राक्षी दास जन्मतिथि- 06 अप्रैल 2003 कक्षा- दसवीं पिता- रणधीर चंद्र दास माता- लकी दास विद्यालय- केंद्रीय विद्यालय नगाँव , असम इन्द्राक्षी दास की कविताएँ जानती हूँ जानती हूँ , आज चारों दिशाओं को दिल ने समेटा है कभी पथ-हारे एक मोड़ पर आ कर दिल से पूछूंगी , अब किस