इन्द्राक्षी दास की कविताएँ
इन्द्राक्षी दसवीं की छात्रा हैं. इनके शिक्षक इन्द्रमणि उपाध्याय ने इनकी कविताएँ 'पहली बार' ब्लॉग के लिए भेजीं हैं. इन्द्राक्षी की कविताएँ संभावनाओं की कविता है. आज जब नयी पीढ़ी अपना अधिकाँश समय मोबाईल, फेसबुक और व्हाट्सएप में गुजार रही है इन्द्राक्षी का यह प्रयास सराहनीय है. इसी क्रम में इन्द्राक्षी का यह सवाल भी काबिले गौर है - "क्या हर बार जरूरी है कविता का सुंदर
दिखना/ जरूरत से ज्यादा अलंकृत होना/ क्या यह पंक्तियाँ ही सुंदर होती हैं/ या इनके पीछे की सोच भी उतनी ही सुंदर
होती है/ सोचती हूँ।" आज पहली बार पर 'नवांकुर' के अंतर्गत हम प्रस्तुत कर रहे हैं इन्द्राक्षी दास की कविताएँ.
कवि परिचय
नाम- इन्द्राक्षी दास
जन्मतिथि- 06 अप्रैल 2003
कक्षा- दसवीं
पिता- रणधीर चंद्र दास
माता- लकी दास
विद्यालय- केंद्रीय विद्यालय नगाँव, असमइन्द्राक्षी दास की कविताएँ
जानती हूँ
जानती हूँ,
आज चारों दिशाओं को दिल ने समेटा है
कभी पथ-हारे एक मोड़ पर आ कर
दिल से पूछूंगी, अब किस राह चलूँ?
किस दिशा में कदम बढ़ाऊँ, इस दफा?
जानती हूँ,
आज हवा के भाव के साथ बहा करती हूँ
कभी इस भाव की रुसवाई पर
ज़िंदगी से पूछूंगी, क्या कभी अपने भाव को
मैंने कभी विराम दिया था?
जानती हूँ,
आज सात रंगों को दिल ने चुना है
कभी उस बेरंग दुनिया में लौट कर
मेधा से पूछूँगी, अब साँसों से और क्या माँगूँ?
अब तो अंधेरे ने भी ठुकराया है हर दफा।
जानती हूँ।
मेरे हिस्से में तिरस्कार ही क्यों था
देखते ही मुंहजोर हो उठी थी
यह मंजर भी कैसा था माँ
मेरी किलकारी गूंजी थी पर
कोख तेरी तब भी सूनी थी।
कुल
का दीपक क्या कहलाती
पिता
ने छाती तक से न लगाया था
देर
सबेरे उठ कर देखा
तेरा
आंचल भी हासिल न था माँ
न पापा की शक्ति बन पाती
न तेरी परछाईं ही माँ
न तेरा बेटा कहलाती
न पापा की दुलारी माँ।
सह-सह कर भी थक सी चुकी थी
यह
नफरत भी कैसी थी माँ
नजरों
से क्या दुनिया देख पाती
मेरे
हिस्से तिरस्कार ही था माँ।
दादी सीना पीट कर रोती
होता क्यों हर बार था माँ
दादा हरदम कहा सुनाते
संयोग की बात थोड़ी थी माँ।
आँखों
में इक तड़प बसी थी
यह
जीवन शापित सा था माँ
पूछती
हूँ दिन रात भाग्य से
मेरे
हिस्से तिरस्कार ही क्यों था माँ।
मुग्ध
खुद को दबाते दबाते इतनी स्थिर हो चुकी
हूँ
कि आज धूल से एक बंधक टीला बन कर
रह गई हूँ।
मैं नहीं चाहती कल को (मेरे) सफ़ेद होते
केशों को
काले रंग में रंगना
पर आज इन्हें (फूलों से) गूँथना चाहती हूँ।
क्या हर बार जरूरी है कविता का सुंदर
दिखना
जरूरत से ज्यादा अलंकृत होना
क्या यह पंक्तियाँ ही सुंदर होती हैं
या इनके पीछे की सोच भी उतनी ही सुंदर
होती है
सोचती हूँ।
सिर को झुकाते झुकाते गर्दन
मानो तिरछी हो गई है सदियों से
मन मस्तिष्क को गुरूर बहुत है
पर मन को मनाते मनाते मन ही रूठ जाता
है,
मैं जान नहीं पाती हूँ।
बातें तो बहुत कुछ हैं, पर लिखना नहीं चाहती हूँ
खुद में मुग्ध हूँ, और इसे मान लो...
मैं मुग्ध हूँ, खुद में मुग्ध हूँ।
गतिहीन
घड़ी के काँटों संग वक्त बीत गया
बदलते ऋतुओं संग यह जीवन बीत गया
यूं ही बेकार में उलझे रहे हम
वो तो मझधार में ही साथ छोड़ गया।
न कभी वक्त जीवन के लिए ठहरा
न कभी जीवन वक्त के लिए ठहरा
पर ये मन तब भी वहीं था, अब भी वहीं है
बस गतिहीन सा वहीं सिमट कर रह गया है।
कल के यादों संग नया अरमान जुड़ गया
तो बीते अरमान बस कुछ यादें दे गए,
यूं ही उन यादों में उलझे रहे हम
ये अरमान भी झूठी याद बन गया।
न कभी रास्ता कदमों के लिए ठहरा
न कभी कदम रास्ते के लिए ठहरे
पर ये मन तो तब भी वहीं था, अब भी वहीं है
बस गतिहीन सा वहीं सिमट कर रह गया है।
वीरांगना
कौन है वो
ममता की चादर लपेट कर
प्यार की मोहताज है जो,
सुंदरता का ताज जिसे हासिल
प्यार की जननी है जो,
वो नारी हूँ मैं,
मैं वीरांगना।
बेलन को अस्त्र धारण कर
चूल्हे की ताप में जलती है जो,
अग्नि जिसकी सहचारिणी है
दिन-रात सबके भूख मिटाती है जो,
वो नारी हूँ मैं,
मैं वीरांगना ।
नेत्र में संसार झलकता जिसके
स्वयं जीवन की दाता है जो,
आभूषण से दुनिया सजाती जिसको
स्वयं मिट्टी से बनी है जो
वो नारी हूँ मैं,
मैं वीरांगना ।
दुनिया जाने यह
एक बूँद है पहचान जिसकी
समंदर का अंश कहलाती है जो,
काश कभी किसी ने पहचाना होता
इस समंदर को धारण करती गागर है वो,
अग्नि स्वरूप तेजस्वी रूप जिसका
जिम्मेदारियों की साड़ी लपेटे हुए
दर्द से तरबतर दिल जिसका
स्वयं रिश्तों की पिरोती डोर है जो,
वो नारी हूँ मैं,
मैं वीरांगना।
परिवार ही संसार जिसका
कुल की इज्जत कहलाती है जो
स्वयं बेइज्जती जीती हुई भी
कुल मर्यादा की ढाल बनी रहती है जो
वो नारी हूँ मैं,
मैं वीरांगना।
देश की बेटी है वो
हर सांस में राष्ट्रप्रेम भरा
इस देश की मिट्टी से बनी है जो
कभी जरूरत आन पड़े तो
आँखों में उबलती ज्वाला व
बेटे का बोझ कंधे पर लिए
तलवार चलाना जानती है जो,
वो नारी हूँ मैं,
मैं हूँ वीरांगना।
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(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.)
(यह पोस्ट इन्द्रमणि उपाध्याय के सौजन्य से प्रस्तुत की गयी है.)
यह बच्ची की लग्न, मेहनत और इन्द्रमणि सर के उचित दिशा निर्देशों का प्रतिफल है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इन्द्राक्षी और इन्द्र मणि सर केंद्रीय विद्यालय का सिर ऊपर उठाने के लिए ....
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर कविताएँ। अन्याय का विरोध साफ़ झलक रहा है। इन्द्राक्षी कविता लगातार लिखती रहोगी तो अच्छी कवि बनोगी। शाबास !
जवाब देंहटाएंKeep it up .great effort
जवाब देंहटाएंGteat
जवाब देंहटाएंAwesome
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास। इतनी कम उम्र में बहुत कुछ गुन लिया है अपने सृजन द्वारा। बधाई ।
जवाब देंहटाएंउत्तम अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंनाम में ही समानता दिखी तो निसंकोच ही पढ़ने चलें आए हैं. बहुत उमदा.
जवाब देंहटाएंबधाइयां प्रेषित हैं.
स्वीकारें.
u r full of talent... Apne mn ki sunna... Kisi ko dekh k mt 11 12 k subject choose krna...
जवाब देंहटाएंKavita se pyari apki soch h Jo mughe dikhi h n m cmnting here... God bless uh...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (17-09-2018) को "मौन-निमन्त्रण तो दे दो" (चर्चा अंक-3097) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
Dear Indrakshi Das.....beta aapki poems bahut hi appreciable hai aur itni chhoti si age mein ek bahut hi gahri soch ko darshati hai..........khoob aage badho .......God Bless You.
जवाब देंहटाएंVery NYC ... बिलकुल असल जिंदगी की झलक है आपकी कविताओं में .... बहुत ही खूबसूरत
जवाब देंहटाएंशाबाश बेटा, आपकी कोशिशें बहुत उम्दा है, आपकी लेखनी उम्रदराज़ हो !
जवाब देंहटाएंसलमान अरशद
अनंत शुभकामनाएं इंद्राणी,, सृजनात्मक धारा अविरल बहती रहे।जीवन मंगलमय हो।।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा
जवाब देंहटाएंआपका भविष्य एक कवयित्री के रूप में महिमामण्डित होगा आशा हैं।गुरुवर का आशीर्वाद सदैव आप पर बना रहे।
सुभाष
वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति इस उम्र से ही।
जवाब देंहटाएंGajabbbb.......!
जवाब देंहटाएंApki koshish bhut achi h indrakshi...apki kavitaye jeevan ka bakhan krti h... Jeevan m aise hi age badho...
जवाब देंहटाएंइन्द्राक्षी एवं इन्द्रमणी सर दोनों को इस सराहनीय प्रयास के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंAti sundar prayaas
जवाब देंहटाएंAap isi tarah aage bhi likhti rahen bagair duniya ki parvaah kiye
GOOD LUCK
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सुन्दर कविताएं
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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जवाब देंहटाएंबाsssप रे....!
जवाब देंहटाएंकौन है वो
जवाब देंहटाएंममता की चादर लपेट कर
प्यार की मोहताज है जो,
सुंदरता का ताज जिसे हासिल
प्यार की जननी है जो,
वो नारी हूँ मैं,
मैं वीरांगना।
👌👌👌👌👌👌👌👌
बहुत ही खूबसूरत, उम्दा विचार!! मेरी बधाई इंद्राक्षी को एवं हार्दिक अनंत शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंवाह वाह , बहुत बढ़िया बेटा, खूब लिखो , आगे बढ़ो
जवाब देंहटाएंअद्भुत कल्पनाशीलता....बेहतरीन.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति। ऐसे ही लिखती रहो बेटा। गुरुजनों का आशीर्वाद सदा बना रहे
जवाब देंहटाएंइन्द्राक्षी आपकी प्रत्येक कविता सराहनीय है। आप सदैव प्रगति पथ पर अग्रसर रहें ऐसी शुभकामना है
जवाब देंहटाएंAwsome keep ut up
जवाब देंहटाएंVery nice poems
जवाब देंहटाएंजानती हूँ,
जवाब देंहटाएंआज हवा के भाव के साथ बहा करती हूँ
कभी इस भाव की रुसवाई पर
ज़िंदगी से पूछूंगी, क्या कभी अपने भाव को
मैंने कभी विराम दिया था?
सुन्दर सृजन
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