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कवि नरेश सक्सेना पर युवा आलोचक नलिन रंजन सिंह का आलेख ‘सुनो चारुशीला: जैसे कविता को लय मिल गई हो’

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  नरेश सक्सेना नरेश सक्सेना हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि हैं। विज्ञान या कह लें कि अभियांत्रिकी से जुड़े होने का प्रभाव उनकी कविता में स्पष्ट परिलक्षित होता है लेकिन यह प्रभाव कोई कृत्रिमता नहीं पैदा करता अपितु प्रकृति के साथ जुडाव को और पुख्ता ही करता है। नरेश सक्सेना के कविता संग्रह ‘सुनो चारुशीला’ के बहाने से उनके कवि और कवि कर्म की एक पड़ताल कर रहे हैं युवा आलोचक नलिन रंजन सिंह। तो आइए पढ़ते हैं नलिन रंजन सिंह का यह आलेख ‘सुनो चारुशीला: जैसे कविता को लय मिल गई हो’       ‘सुनो चारुशीला: जैसे कविता को लय मिल गई हो’ नलिन रंजन सिंह                           ‘ सुनो चारुशीला’ नरेश सक्सेना का दूसरा कविता संग्रह है। पहला संग्रह ‘ समुद्र पर हो रही है बारिश’ पाठकों और आलोचकों द्वारा पहले ही सराहना प्राप्त कर चुका है। नरेश सक्सेना पिछले छः दशकों से कविता लेखन की दुनिया में सक्रिय हैं , फिर भी उनके मात्र दो कविता संग्रहों का छ...