कर्ण सिंह चौहान का आलेख 'जनकवि शील – कुछ अप्रासंगिक प्रसंग'

रचनाशीलता जहां एक तरफ रचनाकार को तमाम पहलुओं पर सोचने विचारने और उसे शब्दबद्घ करने की तरफ प्रेरित करती है वहीं दूसरी तरफ यह रचनाकार को भ्रम में भी डालती है। रचनाकार खुद के विशिष्टता बोध में डूबने उतराने लगता है। इस बोध से बच पाना कठिन होता है। हिन्दी के एक महाकवि हुए हैं - मन्नू लाल शर्मा शील (गाँव पाली, कानपुर)। उनके बारे में हमारे युवा कवियों को शायद ही कुछ मालूम होगा। लीजिए पढ़िए उनके बारे में डाक्टर कर्णसिंह चौहान का एक संस्मरण। यह आलेख हमें अनिल जनविजय के सौजन्य से प्राप्त हुआ है। तो आइए आज पहली बार ब्लॉग पर हम पढ़ते हैं कर्ण सिंह चौहान का आलेख 'जनकवि शील – कुछ अप्रासंगिक प्रसंग'। [23 नवंबर को शील जी की पुण्यतिथि थी। इस अवसर पर कुछ बातें जो अक्सर ऐसे अवसर पर नहीं कही जातीं।] जनकवि शील – कुछ अप्रासंगिक प्रसंग कर्णसिंह चौहान शील का नाम आते ही उनकी जो तस्वीर उभरती है वह बहुत मनोरंजक है। दिल्ली के माल रोड के पास के तिमारपुर इलाके में स्थित सत्यवती कालेज में जनवादी लेखक सम्मेलन हो रहा था। यह जलेस बनने के पहले की बात है, सातवें दशक के मध्य में। कि देखते हैं शील जी घोड़े त...