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प्रभात रंजन की कहानी 'आप तहज़ीब हाफ़ी को सुनते हैं?'

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  प्रभात रंजन  अगर आपसे यह सवाल पूछा जाए कि प्रेम में होना क्या होता है? तो सहसा कोई जवाब नहीं सूझेगा। यही तो प्रेम है जो किसी भी परिभाषा की चौहद्दी में नहीं अंट पाता। यानी परिभाषाओं को भी जो अस्वीकार करने का साहस रखता है, वह प्रेम है। प्रेम अपने आप में उदात्त होता है। कहा जा  सकता है प्रेम हमें संकीर्णताओं से मुक्त करता है। हमारे व्यक्तिगत जीवन में जब दूसरे की सहमति असहमति इस कदर मायने रखने लगती है कि हम उसे सहज ही स्वीकार कर लेते हैं, तब हम प्रेम में होते हैं। अपनी कहानी में प्रभात रंजन एक जगह लिखते हैं ‘अधिकार की भावना ही तो प्रेम की सबसे बड़ी शत्रु होती है। प्रेम अधिकार से नहीं विश्वास से चलता है। विश्वास जितना अधिक होता है प्रेम उतना मुक्त होता जाता है।' हमारे समय के कहानीकारों में प्रभात रंजन का नाम अग्रणी है। 'हंस' के हालिया अंक में उनकी एक कहानी प्रकाशित हुई है जो प्रेम के तंतुओं की करीने से तहकीकात करती है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  प्रभात रंजन की कहानी 'आप तहज़ीब हाफ़ी को सुनते हैं?'   ‘आप तहज़ीब हाफ़ी को सुनते हैं?’  प्रभात ...

प्रभात रंजन द्वारा दिलीप कुमार की अनुवादित आत्मकथा 'वजूद और परछाई : दिलीप कुमार' की यतीश कुमार द्वारा लिखी गयी समीक्षा 'कहानी में सिमटा ज़िन्दगी का सफर'।

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  दिलीप कुमार ( 11 दिसंबर , 1922 - 7 जुलाई , 2021) हिन्दी फ़िल्मों के एक लोकप्रिय अभिनेता रहे हैं। भारत तथा दुनिया के सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में इन्हें शुमार किया जाता है। इनका मूल नाम मुहम्मद यूसुफ़ ख़ान था। अभिनेेत्री और निर्माता देविका रानी , जिन्होंने उन्हें फिल्मों में काम दिया था , के सुझाव पर उन्होंने अपना फिल्मी नाम दिलीप कुमार रखा।     दिलीप कुमार भारतीय संसद के उच्च सदन राज्य सभा के सदस्य रह चुके है। दिलीप कुमार फिल्मों में अपनी भूमिकाएं पात्र की वास्तविकता में डूब कर किया करते थे। त्रासद या दु : खद भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हें ' ट्रेजिडी किंग ' भी कहा ग या । उन्हें भारतीय फ़िल्मों के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था , इसके अलावा दिलीप कुमार को भारत का दूसरा एवं तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण और पद्म भूषण भी प्रदान किया गया। उन्हें पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान नि...