प्रभात रंजन की कहानी 'आप तहज़ीब हाफ़ी को सुनते हैं?'

प्रभात रंजन अगर आपसे यह सवाल पूछा जाए कि प्रेम में होना क्या होता है? तो सहसा कोई जवाब नहीं सूझेगा। यही तो प्रेम है जो किसी भी परिभाषा की चौहद्दी में नहीं अंट पाता। यानी परिभाषाओं को भी जो अस्वीकार करने का साहस रखता है, वह प्रेम है। प्रेम अपने आप में उदात्त होता है। कहा जा सकता है प्रेम हमें संकीर्णताओं से मुक्त करता है। हमारे व्यक्तिगत जीवन में जब दूसरे की सहमति असहमति इस कदर मायने रखने लगती है कि हम उसे सहज ही स्वीकार कर लेते हैं, तब हम प्रेम में होते हैं। अपनी कहानी में प्रभात रंजन एक जगह लिखते हैं ‘अधिकार की भावना ही तो प्रेम की सबसे बड़ी शत्रु होती है। प्रेम अधिकार से नहीं विश्वास से चलता है। विश्वास जितना अधिक होता है प्रेम उतना मुक्त होता जाता है।' हमारे समय के कहानीकारों में प्रभात रंजन का नाम अग्रणी है। 'हंस' के हालिया अंक में उनकी एक कहानी प्रकाशित हुई है जो प्रेम के तंतुओं की करीने से तहकीकात करती है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं प्रभात रंजन की कहानी 'आप तहज़ीब हाफ़ी को सुनते हैं?' ‘आप तहज़ीब हाफ़ी को सुनते हैं?’ प्रभात ...