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राजेन्द्र चन्द्रकान्त राय की पुस्तक ‘स्लीमैन के संस्मरण’ का एक हिस्सा

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  विलियम हेनरी स्लीमैन विलियम हेनरी स्लीमैन का नाम भारतीय इतिहास में इसलिए भी आदर से लिया जाता है कि उन्होंने मध्य भारत की क्रूरतम ठगी प्रथा का साहसपूर्वक अन्त कर दिया। कर्नल स्लीमैन के संस्मरणों का उम्दा अनुवाद राजेन्द्र चन्द्रकान्त राय ने किया है जिसे इलाहाबाद के साहित्य भण्डार से ‘स्लीमैन के संस्मरण’ नाम से प्रकाशित किया जा रहा है। इस संस्मरण का पहला भाग हाल ही में पुस्तकाकार प्रकाशित हुआ है। इसी पुस्तक का एक हिस्सा हम पहली बार के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं जिसमें स्लीमैन के जीवन पर प्रकाश डाला गया है।       सर विलियम हेनरी स्लीमेन , के.सी.बी: परिचय राजेन्द्र चन्द्रकान्त राय स्लीमेन एक प्राचीन कार्निश परिवार है। इस परिवार की जागीरें अनेक पीढ़ियों से कार्नवाल प्रदेश के सेंट जूडी के पूलपार्क नामक स्थान पर थीं। इसी इलाके के कैप्टेन फिलिप स्लीमेन और उनकी पत्नी मैरी स्प्री इसी प्रतिष्ठित परिवार से संबंधित थे। विलियम हेनरी का जन्म इन्हीं के घर पर सन् 1788 की 8 अगस्त को हुआ।  इक्कीस वर्ष की आयु में सन् 1809 में विलियम हेनरी स्लीमेन को लॉर्ड दे डस्टनविले क

ज्ञान प्रकाश चौबे की कविताएँ

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  ज्ञान प्रकाश चौबे परिचय जन्म -   18 जुलाई 1981, चेरूइयाँ , जिला-बलिया , ( उत्तर प्रदेश) शिक्षा- एम. ए. (हिन्दी साहित्य) , बी. एड. (विशिष्ट शिक्षा) , पी-एच. डी. (हिन्दी साहित्य) प्रकाशन- ‘ नाटककार भिखारी ठाकुर की सामाजिक दृष्टि ’ ( आलोचना)। संपादन- शोध पत्रिका ‘ संभाष्य ’ का चार वर्षों तक संपादन। सम्मान- वागर्थ , कादम्बिनी , कल के लिए , प्रगतिशील आकल्प आदि पत्रिकाओं द्वारा कविताएं सम्मानित। संप्रति स्वतंत्र लेखन   प्रगति की अंधाधुंध दौड़ में हम जाने-अनजाने सब कुछ खत्म करते जा रहे हैं. इस बात का ख्याल किये बिना कि क्या सब कुछ खत्म होने के बाद हम यानी मानव प्राजाति के लोग बचे-बने रहेंगे. इस सन्दर्भ में मुझे जर्मन पादरी हेनरी पाश्चर निमोलर कि वह मशहूर कविता याद आ रही है जिसमें न बोलने की परिणति अन्ततः यही होती है कि अंत में वे (यानी हत्यारे लोग) हमारे लिए आये और तब बोलने वाला कोई नहीं बचा था. युवा कवि ज्ञान प्रकाश चौबे उस अनुभूति को अपने इस समय में कविता में ढालते हुए कहते हैं ' खत्म हो रहा है/ बच्चों का फुदकना/ फूल खत्म हो रहे हैं/ खत्म हो रही है रंग