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नितेश व्यास की लम्बी कविता 'कविता पूरे विश्व की मातृभाषा है'

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  नितेश व्यास विश्व में सर्वाधिक लिखी जाने वाली विधा में निःसंदेह कविता अग्रणी है। वैसे भी आमतौर पर यह बात कही जाती है कि दुनिया का हर व्यक्ति प्रथम दृष्टया कवि ही होता है। वह लिखे चाहे न लिखे संवेदना के तौर पर कविता मनुष्य के दिल में हमेशा प्रवहित होती रहती है।  नितेश व्यास ने अपनी लम्बी कविता 'कविता पूरे विश्व की मातृभाषा है' में उचित ही लिखा है कि 'कविता ही हो पूरे विश्व की मातृभाषा और एक मात्र भाषा भी/ जो आकाश से चुनती है अपनी वर्णमालाएं/ मात्राओं की चुनरी ओढ़े लहराती हवाओं सी/ विश्व में कहीं भी जन्मता है कोई भी जीव/ हिलती है पंखुडी/ उड़ती है तितली/ कविता जीवन के खुले पन्नों सी फड़फड़ाती है/ सवेरे की घास जब लगाती है माथे पर ओस की बिन्दी/ तब वही कविता दर्पण हो जाती है'। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं नितेश व्यास की लम्बी कविता 'कविता पूरे विश्व की मातृभाषा है'।   'कविता पूरे विश्व की मातृभाषा है' नितेश व्यास मैं जिस भाषा में सोचता हूं कविता लिखता उससे अलग भाषा में क्यूं न मैं कविता में ही सोचूं कविता और कविता ही हो पूर...

ध्रुव शुक्ल की किताब 'वा घर सबसे न्यारा' पर नितेश व्यास बाबजी की काव्यात्मक समीक्षा 'छाछ जगत बपरानी'।

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   शास्त्रीय संगीत की दुनिया में कुमार गन्धर्व आज भी एक प्रतिमान हैं। लोक संगीत को शास्त्रीय से भी ऊपर ले जाने वाले कुमार जी ने कबीर को जैसा गाया है, वह अदभुत और अविस्मरणीय है। शायद ही कोई गायक उस ऊंचाई को स्पर्श कर पाए। उनकी गायकी में मालवा की धुन और वे लोक गीत भी गूंथे हुए हैं, जो वहां की मिट्टी से जुड़े हैं। यह वर्ष इस अप्रतिम गायक का जन्मशताब्दी वर्ष भी है। कवि ध्रुव शुक्ल ने कुमार गन्धर्व जी की जन्मशती के अवसर पर 'वा घर सबसे न्यारा' जैसी महत्त्वपूर्ण किताब लिखी है। इस किताब को पढ़ कर नितेश व्यास ने एक काव्यात्मक समीक्षा लिखी है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं ध्रुव शुक्ल की किताब 'वा घर सबसे न्यारा' पर नितेश व्यास बाबजी की काव्यात्मक समीक्षा 'छाछ जगत बपरानी'।   छाछ जगत बपरानी नितेश व्यास बाबजी 1. जैसे सूरज हर प्रभात में  लेता है नया जन्म हर कविता से जन्मता है कवि हर राग से जन्म होता है गायक का होने  विराग 2. अनाहत को आहत करने की साधना में लीन रही देह गेह जो सबसे न्यारा स्वर सजाते रहे उसे श्वास के आवागमन की लय धड़कन की ताल से मिल रच...

नितेश व्यास की काव्यात्मक समीक्षा वग़रना शहर में ग़ालिब की आबरू क्या है

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  जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है। जहां संघर्ष नहीं, वहां जीवन नहीं। इस संघर्ष में जो खुद को श्रेष्ठतम साबित करता है, वही बच पाता है। यह बचना ही रचना है। यह बचना अस्तित्व का बचना है। यह हकीकत या सच्चाई से बचना नहीं है। बल्कि यह बचना खुद से एक मुठभेड़ है। इस सन्दर्भ में कवि श्रीकांत वर्मा की पंक्तियां याद आ रही हैं 'चाहता तो बच सकता था/ मगर कैसे बच सकता था/ जो बचेगा / कैसे रचेगा।' अभिनेता पीयूष मिश्रा ने सिने संसार में, आज जो अपनी पहचान बनाई है, वह संघर्ष के दम पर ही बनाई है। हाल ही में उनकी एक किताब आई है 'तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा'। इस किताब की एक काव्यात्मक समीक्षा की है नितेश व्यास ने। अपनी इस काव्यात्मक समीक्षा में नितेश कई जगह मौलिक नजर आते हैं। रचना पर केन्द्रित होते हुए भी स्वतन्त्र अस्तित्व लिए हुए सघन बनावट वाली कविता नितेश रच डालते हैं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं नितेश व्यास की काव्यात्मक समीक्षा  'सन्ताप के भीतर काव्य-सरित्'। वग़रना शहर में ग़ालिब की आबरू क्या है? नितेश व्यास जीवन के पास अपना तराजू है हमारी औकात मापने का, हर मनुष्य के पास है...