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कनक तिवारी का आलेख 'भगत सिंह के प्रयोग'

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   जिस समय भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन पर गांधी जी का वर्चस्व था। जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस समाजवादी मूल्यों के साथ जनता से जुड़ने की कोशिश कर रहे थे, उस समय भगत सिंह ने अपने विचारों और कृत्यों से पूरे भारत का ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट कर लिया। भगत सिंह का जीवन लगभग साढ़े तेइस वर्षों का था। (28 सितंबर 1907 को जन्मे भगत सिंह को ब्रितानी हुकूमत ने 23 मार्च 1931 को उनके साथी  शिवराम, राजगुरु और सुखदेव सिंह के साथ फांसी दे दी थी।) लेकिन उनके विचार सुचिन्तित और परिपक्व थे। ऐसे युवा पर कोई भी देश फख्र कर सकता है। भगत सिंह के फांसी के मुद्दे पर स्वयं गांधी जी भारतीय जनता की आलोचना के केन्द्र में आ गए। यद्यपि भगत सिंह का रास्ता गांधी जी से अलग था तथापि उनके मन में गांधी जी के लिए पर्याप्त आदर और सम्मान था। आज भगत सिंह का जन्मदिन है। आज का दिन इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि हम अपना मूल्यांकन खुद कर सकें कि जिस भारत का सपना हमारे पुरखे के तौर पर भगत सिंह ने देखा था, क्या हम उस तरफ कुछ कदम भी बढ़ पाए हैं। जयंतियाँ ढोंग रचने के लिए नहीं मनाई जानी चाहिए। जयंतियाँ इसलिए मनाई जानी चाह...

भगत सिंह का आलेख 'युवक!'

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  भगत सिंह  हमारे राष्ट्र की नींव न जाने कितने युवाओं के खून से तैयार हुई है। आजादी की लड़ाई में युवाओं का योगदान अविस्मरणीय रहा है। इन युवाओं में अग्रणी नायक थे भगत सिंह।  भगत सिंह काफी पढ़ाकू थे और लेख लिखते रहते थे। कई मौकों पर तो उन्होंने अपने आलेख छद्म नाम से लिखे। उन्होंने अपना आलेख 'युवक' बलवन्त सिंह के नाम से लिखा था जो ‘साप्ताहिक मतवाला’ (वर्ष : 2, अंक सं. 36, 16 मई, 1925) में प्रकाशित हुआ था। इस लेख की चर्चा ‘मतवाला’ के सम्पादकीय कर्म से जुड़े आचार्य शिवपूजन सहाय की डायरी में भी मिलती है। लेख से पूर्व यहाँ 'आलोचना’ में प्रकाशित डायरी के उस अंश को भी उद्धृत किया जा रहा है। आज भगत सिंह का शहीदी दिवस है। इस अवसर पर भगत सिंह की स्मृति को हम नमन करते हैं।आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  भगत सिंह का आलेख 'युवक!' इस आलेख को हमने   www.marxists.org से साभार लिया है। 'युवक!' भगत सिंह सन्ध्या समय सम्मेलन भवन के रंगमंच पर देशभक्त की स्मृति में सभा हुई। ... भगतसिंह ने ‘मतवाला’ (कलकत्ता) में एक लेख लिखा था : जिसको सँवार-सुधार कर मैंने ...

भगत सिंह का आलेख धर्म और हमारा स्वतन्त्रता संग्राम'

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  कोई भी लड़ाई चिन्तन और वैचारिक प्रतिबद्धता के बगैर नहीं लड़ी जा सकती। अमरीकी क्रान्ति हो या फ्रांस की क्रान्ति, बोलशेविक क्रान्ति हो या फिर भारत का स्वाधीनता आन्दोलन इन सबमें एक बात जो समान रूप से सब पर लागू होती है, वह है कि इसके पुरोधा वैचारिक रूप से परिपक्व थे। भगत सिंह एक प्रतिबद्ध क्रान्तिकारी थे। उनके अपने उसूल थे, जिससे वे कभी डिगे नहीं। भगत सिंह बहुत पढ़ाकू थे। समय समय पर वे अपने विचार लेख के रूप में समकालीन पत्र पत्रिकाओं में व्यक्त करते रहते थे। धर्म  ऐसा ही एक मसला है, जो उस समय भारतीय स्वाधीनता संग्राम को भी गहरे तौर पर प्रभावित कर रहा था। इसी क्रम में धर्म पर अपने विचार प्रकट करते हुए भगत सिंह ने स्पष्ट रूप से लिखा 'हमारी आजादी का अर्थ केवल अंग्रेजी चंगुल से छुटकारा पाने का नाम नहीं। वह पूर्ण स्वतंत्रता का नाम है जब लोग परस्पर घुल-मिल कर रहेंगे और दिमागी गुलामी से भी आजाद हो जायेंगे।' भगत सिंह का यह आलेख किरती' नामक पत्र के मई, 1928 संस्करण में प्रकाशित हुआ था। शहीदी दिवस पर नमन करते हुए आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं भगत सिंह का आलेख 'धर्म और हमार...

भगत सिंह का आलेख 'अछूत का सवाल'

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      पुरातन काल से ही भारत की एक बड़ी समस्या अछूत समस्या रही है। इस समस्या ने देश के सामने कई उलझनें खड़ी कीं तथा  काफी क्षति पहुंचाई। आजादी की लड़ाई के समय भी यह समस्या हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को लगातार परेशान करती रही। इसी क्रम में  काकीनाडा में 1923 में कांग्रेस अधिवेशन में मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने अध्यक्षीय भाषण में दलितों को, जिन्हें उन दिनों 'अछूत' कहा जाता था, हिन्दू और मुस्लिम मिशनरी संस्थाओं में बांट देने का सुझाव दिया। हिन्दू और मुस्लिम अमीर लोग इसे पक्का करने के लिए धन खर्चने को भी तैयार थे। दरअसल दलित प्रश्न स्वराज के व्यापक प्रश्न की अंतर्धारा के रूप में चलता रहा। बहस के इस वातावरण में भगत सिंह ने 'अछूत का सवाल' नामक लेख लिखा जो जून, 1928 के 'किरती' में विद्रोही नाम से प्रकाशित हुआ। इस आलेख को हमने 'क्रान्ति की धार विचारों की सान पर तेज होती है' पुस्तिका से साभार लिया है। इसका संपादन विकास नारायण राय ने किया है और यह साहित्य उपक्रम, फरीदाबाद, हरियाणा से प्रकाशित है। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं भगत सिंह का आलेख 'अछूत का सवाल...

भगत सिंह का अपने पिता जी के नाम पत्र

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  भगत सिंह (जन्म :1907, मृत्यु: 23 मार्च 1931) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में साण्डर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। 26 अगस्त, 1930 को अदालत ने भगत सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6 एफ तथा आई.पी.सी. की धारा 120 के अंतर्गत अपराधी सिद्ध किया। 7 अक्तूबर, 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठों का निर्णय दिया, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई। 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई फाँसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का सम...

भगत सिंह का आलेख ‘ मैं नास्तिक क्यों हूँ?’

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  भगत सिंह     मनुष्य के विकास की प्रक्रिया में प्रकृति को समझने की प्रवृत्ति ने उस गल्प को बढावा दिया जिसने एक लम्बे समय के लिए मानव-मस्तिष्क में जड जमा लिया इस समय के मनुष्य ने सृष्टि के निर्माण के लिए उस अलौकिक शक्ति की परिकल्पना की जिसे ईश्वर कहा गया । आगे चल कर जब मनुष्य में तर्क करने की क्षमता का विकास हुआ तो उसने जीवन और जगत को समझने का प्रयास किया । इसी क्रम में विज्ञान का आविर्भाव हुआ । विज्ञान ने तर्क के जरिए कपोल कल्पनाओं को न केवल हतोत्साहित किया बल्कि वास्तविक सत्य की तरफ चलने के लिए उन्मुख भी किया । विज्ञान ने उस गप्प की भी पोल खोली जो प्रकृति को समझने के क्रम में तत्कालीन   मनुष्य ने परिकल्पित किया था । मसलन सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के बारे में राहु और केतु की जो कहानी गढी गयी थी , वह अब मात्र कहानी बन कर रह गई । आज समूची दुनिया सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के पीछे के रहस्य को जानती समझती है । भगत सिंह ऐसे क्रांतिकारी थे जो बहुत कम उम्र में ही वैज्ञानिक चेतना से परिपूर्ण हो गए थे । उनके लेख इस बात की गवाही देते हैं । भगत सिंह का एक चर्चित आलेख ...