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मई, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मनोज पाण्डेय

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क्या हो अगर आज जो स्थिति है वह पलट जाय. अगर आम आदमी के हिस्से में सारी धूप रख दी जाय और साधन-संपन्न लोगों के हिस्से में भयावह अन्धेरा रख दिया जाय. क्या हो अगर आज गांधी जी आज सपरिवार बिहार के चंपारण की यात्रा पर जाय. खाए-अघाए लोगों के लिए यह भले ही अकल्पनीय हो सकता है लेकिन एक कवि इसीलिये विशिष्ट होता है कि वह स्थितियों को इस तरह रख कर भी देख और सोच सकता है और एक समरसतापूर्ण समाज की परिकल्पना कर सकता है. वह समाज जो आज भी हम सबके लिए प्रेय है. वह समाज जिसमें सब बराबर हों. हमारे नए कवि मनोज पाण्डेय इस नयी पहल के हामी हैं. वह जानते हैं कि एकतरफा प्रेम मनोरोग होता है इसलिए वे ऐसा प्रेम चाहते हैं जो दोनों तरफ से बराबर-बराबर का हो. तो आइए रू-ब-रू होते हैं मनोज की तरोताजी कविताओं से.       नई पहल फिर से बाटना लाजमी है जरूरी है बाटना अलग करना नहीं बल्कि बराबरी है कि आपके हिस्से में क्यों रहे “दिन होता है” और मेरे हिस्से में “रात होती है” क्यों न कुछ दिन तुम्हारे हिस्से में “रात होता रहे” और मेरे हिस्से “दिन होती रहे” यह नई पहल  व्याकरण में होनी तो चहिये .   समझदार ल

अल्पना मिश्र

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अल्पना मिश्रा ने अपने शिल्प और भाषा के बल पर हिन्दी कहानी में एक अलग पहचान बनायी हैं। लमही के नए अंक में अल्पना जी की यह कहानी प्रकाशित हुई है जिसे हम पहली बार के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। स्याही में सुरखाब के पंख सोनपती बहन जी माचिस लिए रहती हैं सोनपती बहनजी को भूला नहीं जा सकता था। वे शिक्षा के सबसे जरूरी पाठ की तरह याद रखने के लिए थीं। वे बहुत पहले निकली थीं नौकरी करने, जब औरतें  किन्हीं मजबूरियों में निकलती थीं। वे भी मजबूरी में निकली थीं, ऐसी जनश्रुति थी। जनश्रुति यह भी थी कि उनके पति की मृत्यु के बाद चार लड़कियों की जिम्मेदारी और रिश्तेदारों की हृदयहीनता ने उन्हें नौकरी करने के लिए प्रेरित किया था। यह आम भारतीय जीवन का सच जैसा था और इसी रूप में स्वीकृत सच की तरह भी था। जोर शोर से चलाये जा रहे स्त्री शिक्षा के अभियान के चक्कर में उन्हें घर से पकड़ कर एक रोज स्कूल में बैठा दिया गया था। स्कूल एक सेठ और उनकी पत्नी ने शुरू किया था। इस कन्या पाठशाला के लिए हर हाल में लड़कियाँ चाहिए थीं। वे लोग यानी कि सेठ और सेठानी खुद चल कर उन घरों में गए थे, जहाँ 

डॉ शाश्विता

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          जन्म -  जम्मू में            माँ -     सुश्री सुनीता [ सेवानिवृत्त प्रवक्ता ]           पिता -  विपिन चंद कपूर [ जे एंड के, के भूतपूर्व उपमुख्य मंत्री के सेवानिवृत्त निजी सचिव ]           शिक्षा -  महाराष्ट्र से बी एम एस           लेखन - नौवीं कक्षा में कुछ लघू कहानियाँ लिखी फिर एक विराम के बाद  कॉलेज के दिनों में कविताएँ लिखनी शुरू की            प्रकाशित - प्रेरणा, अभिव्यक्ति, दैनिक कश्मीर टाइम्स आदि में            प्रेरक -   महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान           अन्य -  आकाशवाणी से कविता पाठ और गोष्ठियों का प्रसारण , अनेक मंचों से कविता पाठ            आजीविका - आयुर्वेदिक डॉक्टर शाश्वती की कविताओं में प्रेम की सघन अनुभूति है। यह अनुभूति एक नारी की वह अनुभूति है जो उसे कुदरती तौर पर हांसिल होती है। ऐसी ही अनुभूति वाली कवियित्री कह सकती है 'मैंने वो सब सुना / जो उसने कभी न कहा/ मैंने वो सब छुआ /जो भी उसने छुपाया।' एक नारी का प्रेम कुदरत की तरह ही बहुवर्णी होता है। जब वह प्रेम में होती है तो वह प्रेमिका होती है, पत्नी होती है