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चंद्रकला त्रिपाठी का संस्मरण 'मेरे लिए निर्मला जैन'

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  निर्मला जैन  हिंदी साहित्य की जानी मानी आलोचक निर्मला जैन का 15 अप्रैल 2025 को निधन हो गया। निर्मला जैन की आत्मकथा ‘जमाने में हम’ चर्चित रचनाओं में शुमार की जाती है। हिन्दी आलोचना में जिस समय पुरुषों का वर्चस्व था उन्होंने अपने दम खम पर अपनी सुप्रतिष्ठित जगह बनाई। डॉक्टर नगेंद्र के पश्चात दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में निर्मला जैन ही वह शख्शियत थीं जो कद्दावर साबित हुईं। उनमें धारा के विपरीत चलने का अदम्य साहस था। निर्मला जैन की स्मृतियों को नमन करते हुए आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं कवि आलोचक चंद्रकला त्रिपाठी का  संस्मरण  'मेरे लिए निर्मला जैन'। पाखी में पहले ही प्रकाशित यह  संस्मरण  किंचित संशोधित और परिवर्द्धित प्रारूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। 'मेरे लिए निर्मला जैन' चंद्रकला त्रिपाठी निर्मला जैन को इतना जानने का मौका कि उनके विषय में कुछ लिख सकूं, उनकी जिन आत्मवृत्तांतपरक किताबों को पढ़ने से मिला बल्कि शिद्दत से यह महसूस हुआ कि वे भी आत्मसंघर्ष की कठिन आंच से गड़ी हुई शख्सियत हैं, वे किताबें हैं, 'दिल्ली शहर दर शहर' और 'इस जहां म...